13 December, 2024

कविता | गर्मजोशी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मैंने पूछा धूप से
इन दिनों
इतनी ठंडी क्यों हो तुम?
बिना एक पल गंवाए
धूप ने कहा-
मित्रों में भी तो
गर्मजोशी नहीं बची।
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह 

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01 December, 2024

शायरी | क्या होगा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अभी तो नींद बाक़ी थी,अभी तो ख़्वाब बाक़ी थे,
तुम्हीं जो चल दिए तो सुब्ह के आने से क्या होगा?
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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