यूं अता की है ज़िंदगी तनहा,
मांगने पर दिया नहीं कुछ भी।
मिन्नतें की थीं ख़ूब रब तुझसे!
वक़्त रहते किया नहीं कुछ भी।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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