19 September, 2024

कविता | गुनहगार | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
गुनहगार
      - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
मुझे जाना था 
तुम्हारे साथ
नहीं रह जाना था
यहां अकेले
उसे कैसे कर दूं माफ़
जिसने
क़ैद कर रखा है
इस दुनिया में मुझे
उसे
न माफ़ किया है
न करूंगी...

अपने गुनहगार को 
भला कोई करता है माफ़?       
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