ग़ज़ल
कट रहे हैं दिन
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
कट रहे हैं दिन सुपारी की तरह।
ज़िन्दगी भारी, उधारी की तरह।
चैन के पल हो गए हैं भूमिगत
एक मुजरिम इश्तिहारी की तरह।
बामशक्क़त हर दिवस-अवसान पर
वक़्त मिलता है दिहारी की तरह।
-------------
*दिवस-अवसान = दिन डूबना
*दिहारी = दिहाड़ी, दैनिक मज़दूरी
#शायरी #ग़ज़ल #डॉसुश्रीशरदसिंह
#DrMissSharadSingh #ShayariOfDrMissSharadSingh
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #DrMissSharadSingh #सुपारी #दिन #मुजरिम #इश्तिहारी
No comments:
Post a Comment