"नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट में आज 06.03.2022 को "हम बस्ते में बंधे रह गए" शीर्षक ग़ज़ल प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #नवभारत 🙏
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ग़ज़ल
हम बस्ते में बंधे रह गए
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
वक़्त गया तो जाते-जाते, दिल पर छाला छोड़ गया।
ट्रक से टपके तैल सरीखा, धब्बा-काला छोड़ गया।
पगुराती गायों की गलियों से हो कर जो पल गुज़रा
अलसाए जीवन के ऊपर, मकड़ी-जाला छोड़ गया।
गांव भागते शहर चुरा कर, चौर्यवृत्ति इस क़दर बढ़ी
अधुनातन होने का लालच, सद्गुण-माला छोड़ गया।
दो कानों की बात हमेशा, पड़ी मिली चौराहे पर
जिसका भी दिल आया, उस पर, मिर्च-मसाला छोड़ गया।
प्लेटफाॅर्म के हरसिंगार ने, देखा है उस इंजन को
बेफिक्री से बीड़ी पी जो, धुंआ - उछाला छोड़ गया।
घर से भागे असफल-प्रेमी, जैसा खोया-खोया मन
‘एक शहर की मौत’ ले गया, पर ‘मधुशाला’ छोड़ गया।
चांद रात को आया था जब, तारों की चुग़ली करने
कुर्सी के पुट्ठे पर अपना, फटा दुशाला छोड़ गया।
कलाकार निस्पृह होता है, यही सिद्ध करने, शायद
खजुराहो की रंगभूमि पर, एक शिवाला छोड़ गया।
दूर यात्रा पर जब निकला, सोच-विचारों का छौना
खोल गया सारे दरवाज़े, चाबी-ताला छोड़ गया।
बेहद भूखा था वह शायर, रोटी खाने बैठा था
नई ग़ज़ल की आहट पा कर, हाथ निवाला छोड़ गया।
फिर लगता है, किसी अभागिन ने पीपल का वरण किया
सूरज अपने पीछे-पीछे, लाल उजाला छोड़ गया।
कच्ची स्लेटों पर अक्षर भी, कच्चे- कच्चे उगते हैं
किन्तु मजूरी की खातिर वह अपनी शाला छोड़ गया।
आंधी का इक तीखा झोंका, रिश्ते में ढल कर आया
निष्ठुरता से दीप बुझा कर, सूना आला छोड़ गया।
अहसासों का पंछी आ कर, जब-जब कांधे पर बैठा
आंखों में आंसू का बहता, इक परनाला छोड़ गया।
हम बस्ते में बंधे रह गए ‘शरद’ फाइलों के जैसे
हमको दस्तावेज़ बना कर लिखने वाला छोड़ गया।
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समय आईने में ....
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07 मार्च 2022 ) को 'गांव भागते शहर चुरा कर' (चर्चा अंक 4362) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
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