- डॉ शरद सिंह
सावन, भादों
क्वांर, कार्तिक
वसंत, पतझड़
सारे महीने
सारे मौसम
मेरे भीतर रह कर
देते रहते हैं दस्तक
बाहर आ कर
चेहरे से फूट पड़ने को
बारहमासी बन कर
परन्तु
लग गया है जंग
मन के दरवाज़े के
कब्जों में
पथरा गई हैं
पल्लों की लकड़ियां
उन पर पड़ने वाली थाप
अब नहीं होती
ध्वनित, प्रतिध्वनित
हर मौसम
बनता जा रहा
फॉसिल
दुख की चट्टानों में दब कर
सीने की तलहटी
बहती आंसुओं की नदी में
डूबता-उतराता
हर पल है
हज़ार-हज़ार साल जैसा।
--------------
#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry
मेरी कविता को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार मीना भारद्वाज जी 🙏
ReplyDelete"हर मौसम
ReplyDeleteबनता जा रहा
फॉसिल
दुख की चट्टानों में दब कर
सीने की तलहटी
बहती आंसुओं की नदी में
डूबता-उतराता
हर पल है
हज़ार-हज़ार साल जैसा।" - बहुत ही अनूठा बिम्ब और अनूठे बिम्ब के साथ-साथ वर्तमान जीवन की दिग्भ्रमित एकरसता का सार .. शायद ...
सुन्दर लेखन
ReplyDeleteओह...मन की गहराई को छूकर लौटी रचना... मन से वार्तालाप करती हुई...। खूब बधाई
ReplyDeleteउदास मन का दर्द गहनता से उकेरा है ।
ReplyDeleteदुःख जब घर होता है तो पल पल हज़ार साल जैसा ही लगता है । बहुत मर्मस्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteबेहद हृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteदुखी मन के भावों से बुनी हृदयस्पर्शी रचना।
ReplyDeleteअंतर्वेदना का समय के अलावा कोई मरहम नहीं | मर्मान्तक सृजन पर शब्द नहीं मिल रहे | अपना ख्याल रखिये | आपका जीवन अनमोल हैं |
ReplyDelete