कुछ दोहे : सखी, दोस्त, मित्र पर..
डॉ (सुश्री) शरद सिंह
सखियां करती थीं सदा, दुख-सुख साझा रोज।
अब वो सखियां ग़ुम हुईं, मन करता है खोज।।
व्यस्त ज़िंदगी ले गई, सखियों से भी दूर।
इंस्टा पर या फेसबुक, मिलना हुआ ज़रूर।।
गुड्डे-गुड़िया ब्याहना, अब तक हमको याद।
हंसती हम सखियां सभी, होता जब संवाद।।
गूगल पर या ज़ूम पर, होती तो है बात।
लगे अधूरा किन्तु ज्यों, दूल्हा बिना बरात।।
कहते सब हैं - दोस्ती, जोड़े रखती तार।
दशकों गुज़रें या सदी, आती नहीं दरार।।
"शरद" दोस्त हो या सखी, कभी न छूटे साथ।
भले दूर से ही सही, मिलें दिलों के हाथ।।
------------------------
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२२-०८-२०२०) को 'जयति-जय माँ,भारती' (चर्चा अंक-३८०१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
व्यस्त ज़िंदगी ले गई, सखियों से भी दूर।
ReplyDeleteइंस्टा पर या फेसबुक, मिलना हुआ ज़रूर।।
- इंस्टा पर या फेसबुक पर संवाद हो जाता है यह भी हमारे लिए वरदान हैं,वैसे तो कहाँ किसी की खबर मिलती और कहाँ बोल पाते !