ऐसे में कोई रहे, क्यों अपनों से दूर।।
खेतों में सरसों खिले, जंगल खिले पलाश ।
खजुराहो की भांति ऋतु, किसने दिया तराश ।।
दुख के दड़बे से निकल, सुख के दो पग नाप ।
पहले से दूना लगे, खुद को अपना आप ।।
तोता मैना कर रहे 'ऋतुसंहारम्' याद ।
मौसम ने जो कर दिया, पोर-पोर अनुवाद ।।
उसी राह मिलने लगे महके हुए बबूल।
जिस पर चलने से चुभे, विगत वर्ष में शूल।।
कागज कलम दवात का आज नहीं कुछ काम ।
संकेतों से व्यक्त है मन की चाहत तमाम ।।
आशाओं की देहरी जाग रही है आज ।
आहट गुजरी थी अभी देकर इक आवाज़ ।।
बसंती दोहे 'शरद' खोलें दिल के राज़।
अपनापन मिलता रहे, चलते रहें रिवाज़।।
बेहतरीन दोहे
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