05 January, 2013

मैं करूं क्या ....


14 comments:

  1. लोग मर्यादा की बात तो कर रहे हैं...पर मर्यादा पुरुषोत्तम की नहीं...

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  2. लक्ष्मण रेखा खींच के, जाय बहाना पाय ।

    खून बहाना लूटना, दे मरजाद मिटाय ।
    दे मरजाद मिटाय, सदी इक्कीस आ गई ।

    किन्तु सोच उन्नीस, बढ़ी है नीच अधमई ।

    पुरुषों के कुविचार, जले पर केवल रावण।

    रेखा चलूं नकार, पुरुष ही खींचा, लक्ष्मण ।

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  3. ak talkh sacchayee,behatareen rachna.....new posts:khichadi,ji to lijiye

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  4. डॉ साहिबा आपके इन चार लाइन का जवाब चार जन्मों और तीन लोकों में नहीं है

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  5. बहुत गहन अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .


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  7. केवल चार पंक्तियों में ... जबर्दस्त उलाहना राजसत्ता भोगने वाले उन नेताओं (पुरुषवादी सोच के व्यक्तियों) पर जो सभी पाबंदियां केवल स्त्रियों पर लादने के हिमायती हैं।
    इस बार आपकी व्यंजना शैली का कायल हो गया हूँ।

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  8. बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति @मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .


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  9. सोचने को मजबूर करती पंक्तियाँ ...
    सही कहा है आपने ..

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  10. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति |

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