देखता हूँ तो सोचता हूँ क्या पा सकूँगा में तुझे में अक्सर चाँद के बहाने रोज तुझे देखा करता हूँ तेरी हल्की सी एक मुस्कुराहट ही तो है चाँद.... क्या आजतक ये मालूम हुआ तुझे ...,,.....बहुत .सुंदर...शरद जी .....
Miss Sharad jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें... आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए.. MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
शरद जी आप बहुत अच्छा लिखती हैं, प्रस्तुति बहुत है और टिप्पणियाँ भरपूर मिल रही हैं आपकी रचनाओं को, दरअसल रचना की सफलता का यही सही परिचायिक है। बहुत बहुत वधाई आपको। कभी नवगीत से भी जुड़ें और यहाँ कुछ समय दें।
शरद जी मैंने पिछली बार भी अनुरोध किया था अपनी १०,१५ बेहतरीन क्षणिकाएं भेजिए 'सरस्वती-सुमन' पत्रिका के लिए अपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ .... ये अंक क्षणिका विशेषांक है जो काफी महत्वपूर्ण और संग्रहीन होगा .... आप अपनी रचनायें मुझे मेल द्वारा या डाक से भी भेज सकती हैं ....
jidhar dekhoon teri taswir najar aati hai..prem ki yah sarvoccha awastha hai..kavita wo hai jo kam muh khole jyada bole..aapki rachnayein is tathya ko hamesh satyapit karti hain..aapki dristavya kavita ka chota ans main pad leta hoon aaur brihat ans mahshoos karta hoon..badhayee aaur sadar pranam ke sath
डॉ. मिस शरद सिंह जी आपकी मेहनत और उपलब्धियों के मद्देनज़र, अयोध्या के निकट स्थित हमारी संस्था, आचार्य नरेन्द्र देव किसान पी. जी. कॉलेज, बभनान, गोण्डा, उ. प्र., के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग की ओर से आयोजित तथा यू.जी.सी. द्वारा संचालित ‘युग-युगीन नारी विमर्श’ विषय को केन्द्र में रखकर होने वाली राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभागाध्यक्ष, प्रा. इति. एवं पुरातत्व, अॅसोशिएट प्रो. डॉ. सुशील कुमार शुक्ल तथा आयोजन समिति ने निर्णय लिया है कि आप को इस संगोष्ठी में आपको विशिष्ट अभ्यागत (रिसोर्स पर्शन) के रूप में आमन्त्रित किया जाय। अतः आप इस आमन्त्रण को स्वीकार कर अपनी सहमति ईमेल- cm07589@gmail.com पर अविलम्ब देने की कृपा करें जिससे आपके आने से सम्बन्धित औपचारिकताओं को पूरा किया जा सके। अपना फोन नं. भी मेल में लिख देंगी। जिससे बात हो सके। अथवा 09532871044 पर बात भी करके सूचित कर दें तो अति कृपा होगी। विश्वास है कि आप इस आमन्त्रण को अस्वीकार नहीं करेंगी। आपके आने-जाने तथा रहने का पूरा व्यय महाविद्यालय करेगा। सादर- चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ आ. न. दे. किसान पी. जी. कॉलेज, बभनान, गोण्डा, उ. प्र. फोन नं.- 09532871044 email- cm07589@gmail.com
तो कोई मर्ज़ी है ना.....खुद के साथ....हज़ारों औरतों के असम्मान करते हुए लोगों से हार जाने की.....!! सारी कवितायें पढ़ ली आज आपकी.... सोच रहा था कि क्या बोलूं.... अब चुप रहूँ तो तो समझो नहीं आप और बोलूं तो मैं क्या बोलूं.... चंद पंक्तियों में सार है सारा कुछ शब्दों में अर्थ है न्यारा प्रेम को ध्वनि में व्यक्त करती आँखों से ह्रदय में उतरती.... ये जो कवितायें हैं आपकी... मन को कोमलता को सहलाती स्पंदन-सा कुछ है जगाती.... इत्ती प्यारी सी हैं ये कवितायें.... कि बोलूं तो क्या मैं बोलूं....!!
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी, आचार्य नरेन्द्र देव किसान पी. जी. कॉलेज, बभनान, गोण्डा, उ. प्र., के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग की ओर से आपके द्वारा आमंत्रण हेतु अनुगृहीत हूं.
दुख है कि उक्त तिथियों में दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस में शामिल होना है, जिसकी स्वीकृति मैं आयोजनकर्ताओं को पूर्व में ही दे चुकी हूं. अतः विवशता है. आशा हैकि आप मेरी इस विवशता को अन्यथा नहीं लेंगे.
आपकी सदाशयता के प्रति पुनः आभार प्रकट करती हूं तथा प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग के इस महत्वपूर्ण आयोजन में उपस्थित हो पाने में असमर्थता के लिए क्षमाप्रार्थिनी हूं.
डॉ शरद सिंह जी ...खुबसूरत क्षणिका ...लाजबाब ..यही होता है जित देखूं तित तूं ...सुन्दर भाव प्यारी रचना गजब का रंग दिया मन को छू गयी ...ये ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें थोडा व्यस्तता वश कम मिल पा रहे है सबसे क्षमा करना भ्रमर ५
बहुत सुंदर समर्पण भाव ।
ReplyDeleteप्रेम और भक्ति की अनुपम प्रस्तुति.
ReplyDelete'लाली मेरे लाल की,जित देखूं तित लाल'
आभार.
वाह ... मन को छूते शब्द ।
ReplyDeletebhut khub...sunder:)
ReplyDeleteबहुत खूब ... प्रेम ही प्रेम ..
ReplyDeleteख़ूब कहा है.
ReplyDeleteप्रेम की चरम परिणति है यह ....!
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई |
और बधाई ||
सुभानल्लाह
ReplyDeleteप्यार में चेहरा-ए-महबूब ही अच्छा लगता.
ReplyDeleteऔर दुनिया के नज़ारों से भला क्या लेना.
बहुत खूब...अति सुन्दर....
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteनज़ारे हम क्या देखें?
ReplyDeleteजब परमात्मा में लौ लग गई तो अब देखने को उसके सिवा क्या बचा? बहुत ही श्रेष्ठ रचना.
ReplyDeleteरामराम
कैलाश सी. शर्मा जी,
ReplyDeleteयह मेरे लिए सुखद है कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.आभार.
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
राकेश कुमार जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
सदा जी,
ReplyDeleteआपने मेरी कविता को पसन्द किया आभारी हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
Er. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार।
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह स्नेह बनाएं रखें।
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर प्रतिक्रिया देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
इसी तरह स्नेह बनाएं रखें।
भूषण जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत आभार।
केवल राम जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई...इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
ऋता शेखर 'मधु'जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद...
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
रविकर जी,
ReplyDeleteआपने मेरी कविता को पसन्द किया आभारी हूं।
बहुत बहुत धन्यवाद.
रश्मि प्रभा जी,
ReplyDeleteयह मेरे लिए सुखद है कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.आभार.
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
कुंवर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत एवं आभार।
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
सुषमा 'आहुति' जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें...
संजय कुमार चौरसिया जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार !
प्रवीण पाण्डेय जी,
ReplyDeleteआपको मेरी कविता पसन्द आई यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है... हार्दिक धन्यवाद!
ताऊ रामपुरिया जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें...
प्रेम पगे मन की खूबसूरत अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteआशीष जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई...इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
कविता सीधे ह्रदय में दस्तक देती है जरूर अंतर्मन की दस्तक है , बेहतरीन काव्य ,बधाई
ReplyDeleteऋषि कपूर का गाया गाना याद आ गया ... तेरे चेहरे से नज़र नहीं हटती नज़ारे हम क्या देखें!
ReplyDeleteदेखता हूँ तो सोचता हूँ क्या पा सकूँगा में तुझे
ReplyDeleteमें अक्सर चाँद के बहाने रोज तुझे देखा करता हूँ
तेरी हल्की सी एक मुस्कुराहट ही तो है चाँद....
क्या आजतक ये मालूम हुआ तुझे ...,,.....बहुत .सुंदर...शरद जी .....
ख़ूब कहा....सुंदर भाव
ReplyDeleteसमर्पण भाव से ओत-प्रोत गहन प्रस्तुति.....
ReplyDeleteहर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ....खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteजब तुम ही तुम हो हर सू तो किसी और नज़ारे को देखा भी कैसे जा सकता है ... बहुत खूब ... चंद लेने और अनंत सागर ....
ReplyDeleteकुश्वंश जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचार सुखद लगे....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
बी एस गुर्जर जी,
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार...अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
डॉ॰ मोनिका शर्मा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
महेश्वरी कनेरी जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई... विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
संजय भास्कर जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें....
uljheshabd ,
ReplyDeleteविचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
दिगम्बर नासवा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
अब कुछ न दिख पायेगा....
ReplyDeleteलाली मेरे लाल की ,जीत देखूं तित लाल ...
ReplyDeleteदेखूं तेरा ज़माल ....बहुत सुन्दर मुग्धा भाव की रचना .बधाई .
ये रचना पढ़कर, 'जिगर' साहब का ये शेर याद आ गया!
ReplyDeleteहर सू दिखाई देते हैं वो जलवागर मुझे
क्या क्या फरेब देती है मेरी नज़र मुझे
कुमार जी,
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार...अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
वीरूभाई जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई...इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
'साहिल' जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचार सुखद लगे....
हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
बेहतरीन........
ReplyDeleteनिवेदिता जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....हार्दिक आभार।
प्रेमातिरेक को अभिव्यक्त करती संक्षिप्त रचना.अति सुंदर.
ReplyDeleteवाह!!! प्रेम की पराकाष्ठा...बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteसुंदर ,अति सुंदर..
ReplyDeleteहर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ....खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत खूब बधाई
ReplyDeleteएक अनुत्तरित प्रश्न ने मन की बात कह ही दी.
ReplyDeleteसूफियाना संगीत गूंज गया....शम्मी कपूर का गाने कि एक लाइन है ..मन में तस्वीर बसी यार की...बस यही तो है ..तू है तू है तू है बस और नहीं..
ReplyDeleteबहुत ही सादे शब्दों में बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति..........
ReplyDeleteसपना निगम जी,
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार...अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
समीर लाल जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई...विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद!
अमृता तन्मय जी,
ReplyDeleteआभारी हूं...विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
सुरेश कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
अरुण कुमार निगम जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
boletobindas जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई... विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
मालिनी गौतम जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
इसी तरह आत्मीयता बनाए रखें....
जयकृष्ण राय तुषार जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....हार्दिक आभार।
Miss Sharad jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
ReplyDeleteआप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
लगता तो नहीं कि नज़र कहीं और जा सकती है.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति सुंदर कविता के माध्यम से.
बधाई.
prem ras ki sunder abhivyakti
ReplyDeleterachana
नीलकमल जी,
ReplyDeleteहिंदी दिवस की आपको भी हार्दिक अग्रिम शुभकामनाएं.
विचारों से अवगत कराने हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद !
रचना दीक्षित जी,
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार...अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
रचना जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
शरद जी आप बहुत अच्छा लिखती हैं, प्रस्तुति बहुत है और टिप्पणियाँ भरपूर मिल रही हैं आपकी रचनाओं को, दरअसल रचना की सफलता का यही सही परिचायिक है। बहुत बहुत वधाई आपको।
ReplyDeleteकभी नवगीत से भी जुड़ें और यहाँ कुछ समय दें।
www.navgeet.blogspot.com
हर सिम्त मुहब्बत के मौसम नज़र आते हैं.
ReplyDeleteया तुम नज़र आते हो या हम नज़र आते हैं.
जिसके तस्वुर से ही जो विराना खिल जाये, उस बहार को और क्या चाहिए ,
ReplyDeleteसदा खिलते रहना मेरे दिल के गुलशन में तुम बहार बन कर .
tremendously beautiful...
ReplyDeletetouched deeply somewhere...
वाह! दो पंक्तियां याद आ गयीं:
ReplyDeleteजिधर देखूं फिजां में रंग मुझको दिखता तेरा है
अंधेरी रात में किस चांदनी ने मुझको घेरा है।
डा० व्योम जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
डॉ.सुभाष भदौरिया जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....हार्दिक आभार।
POOJA ji,
ReplyDeleteThanks for your valuable comment on my poem.
अनुराग शर्मा जी,
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार...अपनी कविता पर आपके विचार जानकर सुखद लगा...
शरद जी मैंने पिछली बार भी अनुरोध किया था अपनी १०,१५ बेहतरीन क्षणिकाएं भेजिए 'सरस्वती-सुमन' पत्रिका के लिए
ReplyDeleteअपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ ....
ये अंक क्षणिका विशेषांक है जो काफी महत्वपूर्ण और संग्रहीन होगा ....
आप अपनी रचनायें मुझे मेल द्वारा या डाक से भी भेज सकती हैं ....
harkirathaqeer@gmail.com
हरकीरत ' हीर' जी,
ReplyDeleteकतिपय व्यस्तता के कारण विलम्ब हुआ है...शीघ्र ही मेल कर रही हूं.
पुनः आग्रह हेतु ससंकोच आभारी हूं.
तुम्ही कहो.........
ReplyDeleteखूबसूरत!
आशीष
--
मैंगो शेक!!!
हर पोस्ट को एक पृष्ठ में परिवर्तित कर दीजिए और सुंदर रंगीन पुस्तक प्रकाशित करवा लीजिए। मुझे लगता है, खूब बिकेगी...।
ReplyDeleteवाह! यह तो ‘जित देखूं तित लाल’ की बात हो गई ॥
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली पंक्तियाँ पसंद आई ! बधाई स्वीकारें!
ReplyDeleteडा० शरद जी ,
ReplyDeleteकृपया नीचे दिए लिंक पर एक बार दस्तक दें
गदर की चिनगारियाँ
लाली मेरे लाल की जित देखूं तित लाल
ReplyDeleteलाली देखन मैं गयी मैं भी हो गयी लाल
भीनी भीनी अभिव्यक्ति !
आशीष जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसन्द करने के लिए आभार...
देवेन्द्र पाण्डेय जी,
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए आभारी हूं....
चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... हार्दिक आभार।
विरेन्द्र जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
इसी तरह संवाद बनाए रखें....
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteआपकी यह सजगता एवं आत्मीयता मुझे आपके स्नेह के सम्मुख नतमस्तक कर देती है.
आभारी हूं...
अरविन्द मिश्रा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
Great creation Dr Sharad...Enjoyed reading...Thanks.
ReplyDeleteDivya ji,
ReplyDeleteI feel honored by your comment. Thanks!
jidhar dekhoon teri taswir najar aati hai..prem ki yah sarvoccha awastha hai..kavita wo hai jo kam muh khole jyada bole..aapki rachnayein is tathya ko hamesh satyapit karti hain..aapki dristavya kavita ka chota ans main pad leta hoon aaur brihat ans mahshoos karta hoon..badhayee aaur sadar pranam ke sath
ReplyDeleteडॉ आशुतोष मिश्र ‘आशु’ जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
bahut hi sundar ......wow
ReplyDeletetum hi tum dikhai dete ho ......... abhar sundar prastuti ke liye ..
ye jankar khushi hui ki app M.P. se hai .aapka blog bahut achha laga
sapne-shashi.blogspot.com
http://premchand-sahitya.blogspot.com/
ReplyDeleteयदि आप को प्रेमचन्द की कहानियाँ पसन्द हैं तो यह ब्लॉग आप के ही लिये है |
यदि यह प्रयास अच्छा लगे तो कृपया फालोअर बनकर उत्साहवर्धन करें तथा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें |
दूसरे नजारे भी ‘तुम ही तुम‘ युक्त हो जाते हैं।
ReplyDeleteदो पंक्तियों की ख़ूबसूरत ‘कहानी‘।
शशि पुरवार जी,
ReplyDeleteआपका आना सुखद लगा.
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
अवनीश सिंह जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
महेन्द्र वर्मा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteइन्द्रनील भट्टाचार्य जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....हार्दिक आभार।
चंद शब्दों में सुन्दर और प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअभिषेक मिश्र जी,
ReplyDeleteआपका आना सुखद लगा.
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... मेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
प्रेम में सौन्दर्य आ ही जाता है फिर और क्या देखना ! वाह ! क्या बात है !
ReplyDeleteऊषा राय जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....हार्दिक आभार।
Koi aur nazaara dekhne ki zarurat hee nahee hai!!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने....सच....!!
ReplyDeleteअच्छी भावाव्यक्ति।
ReplyDeleteडॉ. मिस शरद सिंह जी आपकी मेहनत और उपलब्धियों के मद्देनज़र, अयोध्या के निकट स्थित हमारी संस्था, आचार्य नरेन्द्र देव किसान पी. जी. कॉलेज, बभनान, गोण्डा, उ. प्र., के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग की ओर से आयोजित तथा यू.जी.सी. द्वारा संचालित ‘युग-युगीन नारी विमर्श’ विषय को केन्द्र में रखकर होने वाली राष्ट्रीय संगोष्ठी में विभागाध्यक्ष, प्रा. इति. एवं पुरातत्व, अॅसोशिएट प्रो. डॉ. सुशील कुमार शुक्ल तथा आयोजन समिति ने निर्णय लिया है कि आप को इस संगोष्ठी में आपको विशिष्ट अभ्यागत (रिसोर्स पर्शन) के रूप में आमन्त्रित किया जाय। अतः आप इस आमन्त्रण को स्वीकार कर अपनी सहमति ईमेल- cm07589@gmail.com पर अविलम्ब देने की कृपा करें जिससे आपके आने से सम्बन्धित औपचारिकताओं को पूरा किया जा सके। अपना फोन नं. भी मेल में लिख देंगी। जिससे बात हो सके। अथवा 09532871044 पर बात भी करके सूचित कर दें तो अति कृपा होगी। विश्वास है कि आप इस आमन्त्रण को अस्वीकार नहीं करेंगी। आपके आने-जाने तथा रहने का पूरा व्यय महाविद्यालय करेगा। सादर-
ReplyDeleteचन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
आ. न. दे. किसान पी. जी. कॉलेज,
बभनान, गोण्डा, उ. प्र.
फोन नं.- 09532871044
email- cm07589@gmail.com
यह संगोष्ठी इसी 15-16 अक्टूबर को होनी है। अतः आप तुरन्त सूचित करने की कृपा करें
ReplyDeleteशरद्न जी नमस्कार्।सामर्पण के सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteतो कोई मर्ज़ी है ना.....खुद के साथ....हज़ारों औरतों के असम्मान करते हुए लोगों से हार जाने की.....!!
ReplyDeleteसारी कवितायें पढ़ ली आज आपकी....
सोच रहा था कि क्या बोलूं....
अब चुप रहूँ तो तो समझो नहीं आप
और बोलूं तो मैं क्या बोलूं....
चंद पंक्तियों में सार है सारा
कुछ शब्दों में अर्थ है न्यारा
प्रेम को ध्वनि में व्यक्त करती
आँखों से ह्रदय में उतरती....
ये जो कवितायें हैं आपकी...
मन को कोमलता को सहलाती
स्पंदन-सा कुछ है जगाती....
इत्ती प्यारी सी हैं ये कवितायें....
कि बोलूं तो क्या मैं बोलूं....!!
जिधर देखूँ उधर तेरी तस्वीर नज़र आती है ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्ति ...एक ही लाइन में पूरी कहानी
सुरेन्द्र "मुल्हिद" जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
राजीव थेपड़ा जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... आभार....
निशा महाराणा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये हार्दिक धन्यवाद ...
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी,
ReplyDeleteआचार्य नरेन्द्र देव किसान पी. जी. कॉलेज, बभनान, गोण्डा, उ. प्र., के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग की ओर से आपके द्वारा आमंत्रण हेतु अनुगृहीत हूं.
दुख है कि उक्त तिथियों में दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस में शामिल होना है, जिसकी स्वीकृति मैं आयोजनकर्ताओं को पूर्व में ही दे चुकी हूं. अतः विवशता है. आशा हैकि आप मेरी इस विवशता को अन्यथा नहीं लेंगे.
आपकी सदाशयता के प्रति पुनः आभार प्रकट करती हूं तथा प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विभाग के इस महत्वपूर्ण आयोजन में उपस्थित हो पाने में असमर्थता के लिए क्षमाप्रार्थिनी हूं.
आशा हैकि इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखेंगे.
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ जी,
ReplyDeleteपुनः आभार....
सुमन दुबे जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत एवं आभार।
इसी तरह संवाद बनाएं रखें।
राजीव थेपड़ा जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
बहुत-बहुत आभार......
रजनीश तिवारी जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.... हार्दिक आभार...
डॉ शरद सिंह जी ...खुबसूरत क्षणिका ...लाजबाब ..यही होता है जित देखूं तित तूं ...सुन्दर भाव प्यारी रचना गजब का रंग दिया मन को छू गयी ...ये ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं .....जय माता दी आप सपरिवार को ढेर सारी शुभ कामनाएं नवरात्रि पर -माँ दुर्गा असीम सुख शांति प्रदान करें
ReplyDeleteथोडा व्यस्तता वश कम मिल पा रहे है सबसे क्षमा करना
भ्रमर ५
BEAUTIFUL BUT SEECHLESS LINES.ONCE AGAIN IT MAY BE FAST TO SAY ON THESE LINES.
ReplyDelete