12 September, 2020

कोशिश करते तो सही | डॉ. शरद सिंह | कविता



कोशिश करते तो सही 

- डॉ. शरद सिंह

    

तुम रखते मेरी हथेली पर 

एक श्वेत पुष्प

और वह बदल जाता 

मुट्ठी भर भात में

तुम पहनाते मेरी कलाई में 

सिर्फ़ एक चूड़ी

और वह ढल जाती

पानी की गागर में

एक क़दम तुम बढ़ते एक क़दम मैं बढ़ती

दिन और रात की तरह हम मिलते 

भावनाओं के क्षितिज पर

तुम रखते मेरे कंधे पर अपनी उंगलियां 

और सुरक्षित हो जाती मेरी देह

तुम बोलते मेरे कानों में कोई एक शब्द

और बज उठता अनेक ध्वनियों वाला तार-वाद्य

सच मानो, 

मिट जाती आदिम दूरियां

भूख और भोजन की

देह और आवरण की

चाहत और स्वप्न की

बस,

तुम कोशिश करते तो सही।

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11 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


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    1. हार्दिक आभार रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏🌹🙏

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  2. शुभकामनाएं हिन्दी दिवस की।

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    1. आपको भी हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं सुशील कुमार जोशी जी 🙏

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  3. बहुत सुंदर रचना आदरणीया

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    1. हार्दिक धन्यवाद अनुराधा जी 🙏

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  4. वाह!!!
    बहुत सुन्दर सरस रचना।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा जी 🙏

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  5. बहुत सुंदर रचना
    हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. बहुत सुंदर,
    बिलकिल नए4 तरह का प्रयोग और उपमायें, अच्छा लगा पढ़कर।

    आभार

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