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02 August, 2021

बेचारे शब्द | कविता | डॉ शरद सिंह

बेचारे शब्द
              - डॉ शरद सिंह

बहुत से शब्द
होते हैं
लकीर के फ़कीर

कुछ चलते हैं 
लकीर के नीचे-नीचे 
तो कुछ चलते हैं 
लकीर के ऊपर चढ़कर 
गोया लकीर तय करती हो 
उनकी चाल को,
शब्द 
लकीर पर लटकते, फुदकते 
बनाए रखते हैं अपना संतुलन

कुछ शब्द 
बाएं से दाएं चलते हैं 
भारतीय ट्रैफिक नियमों की तरह 
तो कुछ दाएं से बाएं चलते हैं 
अमेरिकी ट्रैफिक नियमों की तरह
 
शब्द 
सीमाएं लांघ जाते हैं देशों की
बिना कुछ कहे सुने
कभी करा देते हैं युद्ध 
तो कभी समझौता 
तो कभी बन जाते हैं 
खुद ही शरणार्थी

शब्द
जोड़ भी सकते हैं
तोड़ भी सकते हैं

शब्द
प्रेम में घुलें तो अमृत
शब्द
बैर में घुलें तो विष

शब्द 
कभी कह देते हैं सब कुछ
तो कभी
छुपा लेते हैं बहुत कुछ

अफ़सोस कि
शब्द 
अक्षरों का समुच्चय हैं
उनका अपना कुछ भी नहीं
अक्षरों के बिना
वे कुछ भी नहीं।
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