ग़ज़ल
उसकी यादें
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
उसकी यादें दरवाज़े पर दस्तक बन टकराती हैं।
दिल की चौखट रो पड़ती है, आंखें भर-भर आती हैं।
ज़िन्दा रहना कमिट किया है, सांसें तो लेनी होंगी
वरना अब तो इच्छाएं भी, मुझसे ही कतराती हैं।
मुस्कानों का मास्क लगा कर, दर्द छिपाना बहुत कठिन
आंसू की बूंदें तो अकसर आंखों में उतराती हैं।
कभी-कभी ऐसा लगता है, मौन साध लें दुनिया से
अपनेपन की मृगतृष्णा भी राहों में भटकाती है।
जब तक हिम्मत साथ दे रही, लोहा लेंगे क़िस्मत से
देखें क़िस्मत हमको कितने, कैसे खेल खिलाती है।
वर्षा के बिन 'शरद' आएगी, कब तक आखिर ऋतुओं में
बदल रहे मौसम के क्रम अब, बात यही उलझाती है।
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ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार 26 अगस्त 2022 को 'आज महिला समानता दिवस है' (चर्चा अंक 4533) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत अच्छी और प्रभावी गज़ल
ReplyDeleteसुंदर शब्द संयोजन
वर्षा के बिन 'शरद' आएगी, कब तक आखिर ऋतुओं में
ReplyDeleteबदल रहे मौसम के क्रम अब, बात यही उलझाती है। विनम्र श्र्द्धांजलि!
संवेदनशील मन की हृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteआदरणीया मैम, आज एक बार फिर आपकी इस रचना को पढ़ा , जब भी पढ़ती हूँ तब आँखें भर आती है । इससे पूर्व भी आपकी बहुत सी रचनायें पढ़ चुकी हूँ , वह भी जो आपने आदरणीया वर्षा मैम को समर्पित की हैं और आपकी अन्य रचनायें भी । वास्तव में मैं आपकी रचनायें पिछले दो वर्ष से पढ़ रही हूँ परंतु कभी किसी रचना पर प्रतिक्रिया न दे पाई । कारण यह , आपकी रचनाओं में , पीड़ा इतनी स्पष्ट दिखाई देती कि आपकी रचनाएं पढ़ कर सदा आँखें भर आतीं और कोई भी शब्द या वाक्य नहीं सूझता, भयभीत भी होती कि कहीं मेरी कोई टिप्पणी आपकी उदविघ्नता न बढ़ाए । पर आपकी रचनायें इतनी सुंदर भी हैं , आपकी रचनायें प्रेरित भी करती हैं और उन्हें पढ़ कर मेरे मन में आपके प्रति आदर भी जगने लगा अतः आज खुद को रोक नहीं पाई । मैं द्वितीय वर्ष एम. ए छात्रा हूँ और ब्लॉग जगत में कदम कोरोना काल के आरंभ २०२० में रखा था, तब से आपकी कविताएं पढ़ रही हूँ । आपकी रचनाओं को पढ़ कर आपके प्रति जो आदर मेरे मन में जागा , उसी कारण आपको आज लिख रही हूँ । आगे भी आपको पढ़ने आती रहूँगी । आदरणीया वर्षा मैम को विनम्र श्रद्धांजलि ।
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