जड़ता में भी ऎसी स्थिति बन जाती है .... मूक होकर अपलक शून्य दृष्टि से निहारते रहना. विषाद जब गहरा जाता है तब दृष्टि को किसी वस्तु पर टिका जाता है. हाँ ये सही है कि जब आकर्षण से प्रेम पनपता है तब समस्त ज्ञानेन्द्रियों को मुग्धता की स्थिति में ले आता है. और इसी मुग्धावस्था में जब वियोग या संयोग की स्मृति मानस में तैरती है तब भी दृष्टि को शून्य कर देती है. 'मूकभावेन अपलक शून्य दृष्टि' एक मानसिक अवस्था है जो अतिशयता से उपजती है : — अति आकर्षण — अति विषाद — अति सुखद स्मृति — अति दुखद स्मृति
आदरणीय डॉ. (सुश्री) शरद सिंह जी, यथायोग्य अभिवादन् ।
जी... बहुत कम शब्दों में आपने गीता और कुरआन के सार को रच दिया। बगैर कुछ कहे, जब जिन्दगी में बहुत कुछ कहना हो चले, तब वाकई में वह प्रेम ही होगा? हर धर्म, हर जाति और हर समाज में स्वीकार्य यह प्रेम, आज तलक खारिज क्यूं होता रहा है, समझ से परे है? जी... मंदिर की घण्टी और मस्जिद के अजान की जरूरत ही कहां रही, तब, जब ऐसा मौन सुनकर प्रेम की इस तरह अभिव्यक्ति हो सकती है? बेहतरीन रचना....। मंदिर-मस्जिद ही नहीं हर देहरी पर ऐसा मौन आवाज लगाये..... कामना है।
sabse pahle to aap ko namaskaar, aapka blog padkar bahut achha lagta hai.... aap kam shabdon men sbkuchh kah dalhi hai.... nayaab post hai... naya naya hun abhi blog jagat men... mere blog par aapka swagat hai....
आपने सवाल भी ऐसा पूछा है जो पढने में तो चंद शब्दों का है पर पूरी कायनात के जवाबों के सामने भी उतरित होकर भी, अंतत: अनुतरित ही रहेगा. बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति.
इस छोटी सी रचना में कुछ बात बहुत बड़ी है जो बहुत देर तक मन के अंदर बैठी रही और यह शेर याद आ गया ... नज़र में ढ़ल के उभरते हैं दिल के अफ़साने, यह और बात है, दुनियां नज़र न पहचाने।
संगीता स्वरुप जी, आदरणीय मनोज जी के लिंक की सूचना देने के लिए हार्दिक आभार...संभवतः मुझे वहां तक पहुंचने में कुछ विलम्ब हो जाता किन्तु आप की सूचना पढ़ते ही मैं सीधे वहां पहुंची... आपका यह स्नेह एवं आपकी यह सदाशयता हमेशा मेरे मन को गहरे तक छू जाती है. पुनः हार्दिक आभार.
नैनों को सवाक संवाद की ज़रुरत ही कहाँ होती है .गलत कहा है किसी ने -न जुबान को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात होती है .चितवन ही तो जादुई होती है जहां विहंगावलोकन भी त्रि -आयामीय होता है .
kya kahun,shabd asmarth hai sach ki abhivyakti ke liye, aisa kya kaha tumne'tb bhi...... aur kuch nahi kehna tb bhi...... ahsaaso ka byaan .....khoobsoorat
baar baar aa raha hooon...aplak niharti taswir pa raha hoon...kavita pahle padhi thi ab yaad ho gayi hai...use aplak maun niharna se badi koi abhivyakti nahi prem ki ..mudde pe dil ki dimag se ladai ho gayi hai....waiting for your another wonderful creation...sadar pranam ke sath
Mam u r awesome... n these few lines r just tremendous... shabd nahi mil rahe... padhne ke baad laga jaise kisi ne dil tatol kar uske raaz duniya ke saamne rakh diye... simply great...
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सुंदर है यह मौन अभिव्यक्ति प्रेम की ...!!
ReplyDeleteवाह्….……कितनी खूबसूरती से प्रेम को परिभाषित कर दिया।
ReplyDeletebeautiful post. THis poem touched my heart,
ReplyDeleteexcellent write!
अपलक ... ! भाषा कैसी फिर !
ReplyDeleteअनुपमा त्रिपाठी जी,
ReplyDeleteआपका स्नेह मेरी कविता को मिला...यह मेरा सौभाग्य है...
वन्दना जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
संजय भास्कर जी,
ReplyDeleteआत्मीय टिप्पणी के लिए अत्यंत आभार....
रश्मि प्रभा जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....आभारी हूं...
मौन अपलक निहारना.
ReplyDeleteक्या बात है.
सुन्दर चित्र के साथ आपकी प्रस्तुति क्या प्रेम का ही इजहार है?
'गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी,प्रगट न लाज निसा अवलोकी'
मेरी टिपण्णी पर आपकी प्रति टिपण्णी कुछ और भी प्रगट करे तो
ज्यादा आनंद आयेगा.
sambad jab tak hain...purnatav ho hi nahi sakta..
ReplyDeletemera uttar hai...kadapi nahin
मौन अपलक निहारना.
ReplyDelete..बहुत ही खूबसूरती से प्रेम को परिभाषित कर.प्रेम को एक नया और मासूम रुप देदिया है..बहुत सुन्दर..शरद जी..
राकेश कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के प्रति आपकी टिप्पणी रूपी काव्यपंक्ति के लिए आभारी हूं.
डॉ.आशुतोष मिश्रा आशु जी,
ReplyDeleteआपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए अत्यंत आभार....
खूब लिखा.
ReplyDeleteअपलक निहारना भी एक ज़बरदस्त अभिव्यक्ति है body language के अंतर्गत.
माहेश्वरी कनेरी जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
आपकी सुधी टिप्पणी के लिए आभारी हूं.
कुंवर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार.
जड़ता में भी ऎसी स्थिति बन जाती है .... मूक होकर अपलक शून्य दृष्टि से निहारते रहना.
ReplyDeleteविषाद जब गहरा जाता है तब दृष्टि को किसी वस्तु पर टिका जाता है.
हाँ ये सही है कि जब आकर्षण से प्रेम पनपता है तब समस्त ज्ञानेन्द्रियों को मुग्धता की स्थिति में ले आता है. और इसी मुग्धावस्था में जब वियोग या संयोग की स्मृति मानस में तैरती है तब भी दृष्टि को शून्य कर देती है.
'मूकभावेन अपलक शून्य दृष्टि' एक मानसिक अवस्था है जो अतिशयता से उपजती है :
— अति आकर्षण
— अति विषाद
— अति सुखद स्मृति
— अति दुखद स्मृति
आदरणीय डॉ. (सुश्री) शरद सिंह जी,
ReplyDeleteयथायोग्य अभिवादन् ।
जी... बहुत कम शब्दों में आपने गीता और कुरआन के सार को रच दिया। बगैर कुछ कहे, जब जिन्दगी में बहुत कुछ कहना हो चले, तब वाकई में वह प्रेम ही होगा? हर धर्म, हर जाति और हर समाज में स्वीकार्य यह प्रेम, आज तलक खारिज क्यूं होता रहा है, समझ से परे है?
जी... मंदिर की घण्टी और मस्जिद के अजान की जरूरत ही कहां रही, तब, जब ऐसा मौन सुनकर प्रेम की इस तरह अभिव्यक्ति हो सकती है?
बेहतरीन रचना....। मंदिर-मस्जिद ही नहीं हर देहरी पर ऐसा मौन आवाज लगाये..... कामना है।
रविकुमार बाबुल
ग्वालियर
हमेशा की तरह अव्वल प्रस्तुति.....बहुत खूब ....
ReplyDeleteप्रतुल वशिष्ठ जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के प्रति अपलक शून्य दृष्टि से निहारने की बहुत सुन्दर व्याख्या की है आपने....हार्दिक धन्यवाद एवं आभार...
रविकुमार बाबुल जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से अभीभूत हूं...
हार्दिक आभार...
सारदा जी,
ReplyDeleteआपको अपने इस ब्लॉग पर देख कर अत्यंत प्रसन्नता हुई...
मेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
'मौन'तो सबसे बड़ा हथियार है ही । 'प्रेम'तथा 'युद्ध'के मैदान मे भी मौन रहने वालों की जीत सुनिश्चित है।
ReplyDeleteविजय माथुर जी,
ReplyDeleteअपनी कविता पर आपकी विचारपूर्ण टिप्पणी पढ़ कर अत्यंत प्रसन्नता हुई. हार्दिक धन्यवाद...
मौन प्रेम की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..कुछ शब्दों में बहुत कुछ कह दिया..
ReplyDeletekyaa baat hai..kitni badi baat kehi hai aapne....sundar:)
ReplyDeleteबेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
इससे बड़ी अभिव्यक्ति और क्या होगी....
ReplyDeleteउसकी इक आवाज सुनने को, ताउम्र मै तरसती रही..
ReplyDeleteमौन रह वो सबकुछ कह गया, ये आंखें बरसती रही....
मौन रहकर भी सब बोल देना निपुण प्रेम की सबसे बड़ी कला है..
अति सुन्दर रचना...आभार...
Suresh Kumar
http://sureshilpi-ranjan.blogspot.com
वाह! समंदर से भी गहरी अभिव्यक्ति छुपी है इन दो पंक्तियों में !
ReplyDeleteआभार !
कैलाश सी.शर्मा जी,
ReplyDeleteआभारी हूं आपकी सहृदय टिप्पणी के लिए....
Er. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteजानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....हार्दिक धन्यवाद .
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
वीना जी,
ReplyDeleteआपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए आभारी हूं...
सुरेश कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के प्रति आपकी टिप्पणी रूपी काव्यपंक्ति के लिए आभारी हूं.
ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
ReplyDeleteसदा जी,
ReplyDeleteआपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए अत्यंत आभार....
मौन अपलक !!!...निहारना
ReplyDeleteवाह क्या बात है !
रचना और चित्र .......मौन ही मुखर हो उठता है
sabse pahle to aap ko namaskaar,
ReplyDeleteaapka blog padkar bahut achha lagta hai....
aap kam shabdon men sbkuchh kah dalhi hai....
nayaab post hai...
naya naya hun abhi blog jagat men...
mere blog par aapka swagat hai....
...बिलकुल नहीं हो सकती ! ....बहुत सुंदर
ReplyDeleteBahut khosurat...!
ReplyDeleteहमेशा की तरह आप कम शब्दों में बहुत खुबसूरत अभिवयक्ति की है आपने.....
ReplyDeleteसुंदर , .बहुत सुंदर
ReplyDeleteLagta hai esa apki rachna padhkar,
ReplyDeletejeae ek bund me ho hjaron sagar,,
achi lagi apki ye rachna......
Jai hind jai bharat
मौन अपलक निहारना ... बहुत खूबसूरती से प्रेम को अभिव्यक्त किया है ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय डॉ (मिस) शरद सिंह जी -बिलकुल नहीं हो सकती -ये आँखें बोलती है मौन कैसे आड़े आएगा पिय मिलन में ..सुन्दर गागर में सागर
ReplyDeleteआभार आप का -बधाई भी
भ्रमर ५
बिल्कुल नही। सत्य वचन।
ReplyDeleteसुरेन्द्र सिंह " झंझट "जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
कुमार जी,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर फिर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
आपने मेरी कविता को पसन्द किया आभारी हूं।
रजनीश तिवारी जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के मर्म को रेखांकित करती आपकी टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार...
रवि राजभार जी,
ReplyDeleteअपने विचारों से अवगत कराने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद।
सुषमा आहुति जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
आभारी हूं।
संजय कुमार चौरसिया जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
साजन आवारा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के प्रति आपकी टिप्पणी रूपी काव्यपंक्ति के लिए आभारी हूं.
बहुत-बहुत धन्यवाद...
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
सुरेन्द्र शुक्ला भ्रमर जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार...
अमित चन्द्रा जी,
ReplyDeleteआपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए अत्यंत आभार....
यही सबसे सशक्त अभिव्यक्ति है, इसमें संदेह नहीं. सुंदर सृजन.
ReplyDeleteभूषण जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के मर्म को रेखांकित करती आपकी टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
वाकई नहीं .....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आपने सवाल भी ऐसा पूछा है जो पढने में तो चंद शब्दों का है पर पूरी कायनात के जवाबों के सामने भी उतरित होकर भी, अंतत: अनुतरित ही रहेगा. बहुत लाजवाब अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteरामराम.
इस छोटी सी रचना में कुछ बात बहुत बड़ी है जो बहुत देर तक मन के अंदर बैठी रही और यह शेर याद आ गया ...
ReplyDeleteनज़र में ढ़ल के उभरते हैं दिल के अफ़साने,
यह और बात है, दुनियां नज़र न पहचाने।
racna dil ko choo gayi
ReplyDeleteआपने तो गागर में सागर भर दिया है
ReplyDeletebeautiful poem
ReplyDeleteएक सीधी लगनेवाली बात बेहद प्रभावशाली और कम शब्दों में, मगर दूर तक छूती बधाई
ReplyDeleteडा० शरद जी ,
ReplyDeleteकृपया नीचे दिए लिंक पर एक बार दस्तक दें
फुर्सत में ...
सतीश सक्सेना जी ,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार...
ताऊ रामपुरिया जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया है आपने मेरी कविता के मर्म को....अनुगृहीत हूं.
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के प्रति आपकी टिप्पणी रूपी काव्यपंक्ति के लिए आभारी हूं.
बहुत-बहुत धन्यवाद...
रोशी जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
उपेन्द्र शुक्ल जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
sm ji,
ReplyDeleteI am very glad to see your comment on my poem. Hearty thanks.
Always welcome your comments on my blogs.
कुश्वंश जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
विचारों से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
संगीता स्वरुप जी,
ReplyDeleteआदरणीय मनोज जी के लिंक की सूचना देने के लिए हार्दिक आभार...संभवतः मुझे वहां तक पहुंचने में कुछ विलम्ब हो जाता किन्तु आप की सूचना पढ़ते ही मैं सीधे वहां पहुंची...
आपका यह स्नेह एवं आपकी यह सदाशयता हमेशा मेरे मन को गहरे तक छू जाती है.
पुनः हार्दिक आभार.
मौन की भाषा गहन होती है, शब्दों के परे होती है।
ReplyDeleteप्रवीण पाण्डेय जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया है आपने मेरी कविता के मर्म को....अनुगृहीत हूं.
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteडोरोथी जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
अंकित पाण्डेय जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार...
prem ki abhivyakti hoti hee kuch aaisi hai, jo juban ko maloom naheen. sunder.
ReplyDeleteनीलम चंद जी,
ReplyDeleteविचारों से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
ये मौन मन्त्र मुग्धता प्रेम की शाश्वत अभिव्यक्ति है .संवाद यहाँ सतही नहीं डेफ्थ लिए होता है त्रि -आयामीय .सुन्दर अभिव्यक्ति चित्र मय .
ReplyDeleteप्रेम की अभिव्यक्ति का सुन्दर चित्रण। साधुवाद।
ReplyDeleteवीरूभाई जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया है आपने मेरी कविता के मर्म को....अनुगृहीत हूं.
आचार्य परशुराम राय जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
नैनों को सवाक संवाद की ज़रुरत ही कहाँ होती है .गलत कहा है किसी ने -न जुबान को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात होती है .चितवन ही तो जादुई होती है जहां विहंगावलोकन भी त्रि -आयामीय होता है .
ReplyDeleteप्रेम की पराकाष्ठा को शब्दों में बांध लिया आपने .आभार
ReplyDeleteइतना ही काफी है प्यार जताने के लिए....सुन्दर रचना,आभार
ReplyDeleteवाह...क्या खूब कहा !
ReplyDeletekum shavdo me vazanee abhivykti........
ReplyDeletewah kya baat hai?
क्या कहने। बहुत सुंदर
ReplyDeleteवीरूभाई जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया है आपने मेरी कविता के मर्म को....अनुगृहीत हूं.
आशीष जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार...
वीरेन्द्र जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है....आभार।
मनोज कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
अपनत्व...,
ReplyDeleteविचारों से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
महेन्द्र श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार...
महेन्द्र श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर जाते ही एक्सप्लोरर क्रश हो जाता है. कृपया, उसे चैक कर लें.
प्रेम के हज़ार रंग हैं
ReplyDeleteकाजल कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के मर्म पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक आभार...
Suman ji,
ReplyDeleteI am very glad to see your comment on my poem. Hearty thanks.
Always welcome your comments on my blogs.
वाह! प्रेम की उत्कृष्ट और सारगर्भित परिभाषा
ReplyDeletekitna sunder likha hai gagar me sagar .in panktiyon ki vyakhya ki jaye to kavyadhara bah niklegi
ReplyDeleterachana
बेहतरीन!!!
ReplyDelete'साहिल' जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
रचना जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं कि बहुत सुन्दर ढंग से व्याख्यायित किया है आपने मेरी कविता के मर्म को....
समीर लाल जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार...
बहुत ही सुन्दर,शानदार और उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDelete9 दिन तक ब्लोगिंग से दूर रहा इस लिए आपके ब्लॉग पर नहीं आया उसके लिए क्षमा चाहता हूँ ...आपका सवाई सिंह राजपुरोहित
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब! चंद पंक्तियों में आपने बड़े खूबसूरती से प्यार की परिभाषा को व्यक्त किया है! ज़बरदस्त प्रस्तुती!
ReplyDeleteuff ye to FB pe status banane layak hai pankti:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर....गागर में सागर ...
ReplyDeleteयह मौन अभिव्यक्ति प्रेम की .
nahi..........................................
ReplyDeletekya kahun,shabd asmarth hai sach ki abhivyakti ke liye,
aisa kya kaha tumne'tb bhi......
aur kuch nahi kehna tb bhi......
ahsaaso ka byaan .....khoobsoorat
ज़ालिम ज़माना...इतना वक्त ही कहाँ देता...
ReplyDeletebahut sundar bhav ...lajawab .
ReplyDeleteसवाई सिंह राजपुरोहित जी,
ReplyDeleteमेरी कविता की सराहना के लिए हार्दिक आभार...
सवाई सिंह राजपुरोहित जी,
ReplyDeleteदेर से सही, आपका आना सुखद लगा ...... हार्दिक धन्यवाद !
उर्मि जी,
ReplyDeleteआमंत्रण के लिए आभार...
मुकेश कुमार सिन्हा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
डॉ. हरदीप संधु जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है....
बहुत-बहुत धन्यवाद.
अंजू जी,
ReplyDeleteमेरी कविता के मर्म पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिए हार्दिक आभार...
वाणभट्ट जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर अपने विचारों से अवगत कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद...
शिखा कौशिक जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक आभार...
उर्मि जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
कविता बहुत अच्छी है ..अपलक निहारना! बहुत सुन्दर !
ReplyDelete..टिप्पणियों में व्याख्या पढ़ी..बहुत बढ़िया!
bahut sunder...yahi hai prem ki abhivyakti...
ReplyDeletebaar baar aa raha hooon...aplak niharti taswir pa raha hoon...kavita pahle padhi thi ab yaad ho gayi hai...use aplak maun niharna se badi koi abhivyakti nahi prem ki ..mudde pe dil ki dimag se ladai ho gayi hai....waiting for your another wonderful creation...sadar pranam ke sath
ReplyDeleteअल्पना वर्मा जी,
ReplyDeleteआपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार...
कविता वर्मा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता पर आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है....हार्दिक आभार।
डा.आशुतोष मिश्र आशु जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
आपकी सुधी टिप्पणी के लिए आभारी हूं. आपका सदैव स्वागत है.
are behtareen hai...sahi soch..
ReplyDeleteummeed hai aap is blog pe likhi kuch rachnayein padhengi:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
aise hi kuch ehsaason ka samaavesh hai wahaan
aaderniya sharad ji behtreen kavita.. mei to bakeye maun ho gaye..
ReplyDeleteएहसास जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
कनक ग्वालियरी जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये हार्दिक आभार....
Prem ki prakashtha ko choo liya aapne
ReplyDeleteas usual excellent photo with beautiful lines..
ReplyDeleteमौन था मन ,ह्रदय निस्पंद झुके हैं चक्षु ,मंजुकपोल और वो न जाने क्यूँ छुपाते रहे सूखे पड़े उन अधरों की सुर्ख़ियों में वो ढाई आखर प्रेम के.....अक्षय-मन
ReplyDeleteमैं समझता हूँ प्यार शब्दों में या किसी अभिव्यक्ति मैं नहीं बंध सकता हाँ हम इस माध्यम से उसे परिभाषित करने की कोशिश कर सकते हैं...
आपने बहुत ही अच्छा लिखा है..
मोहिन्दर कुमार जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
अमित श्रीवास्तव जी,
ReplyDeleteHearty Thanks for your comment...
You are always welcome in my blog.
अक्षय मन जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
एस एन शुक्ला जी,
ReplyDeleteमित्रता दिवस पर आपको भी हार्दिक शुभकामनाएं...
आभारी हूं स्मरण के लिए.
सोनू जी,
ReplyDeleteआपको भी मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाये...
ye bhi prem ki ek bhasha hai ,sundar likha ..
ReplyDeleteज्योति सिंह जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
ब्लॉग की 100 वीं पोस्ट पर आपका स्वागत है!
ReplyDelete!!अवलोकन हेतु यहाँ प्रतिदिन पधारे!!
सवाई सिंह राजपुरोहित जी,
ReplyDeleteआमंत्रण हेतु हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं...
सवाई सिंह राजपुरोहित जी,
ReplyDelete100वीं पोस्ट की आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें!
इसी तरह गतिवान रहें और लिखते रहें.
Mam u r awesome... n these few lines r just tremendous...
ReplyDeleteshabd nahi mil rahe...
padhne ke baad laga jaise kisi ne dil tatol kar uske raaz duniya ke saamne rakh diye...
simply great...
क्या बात है शरद जी .....
ReplyDeleteबहुत खूब .....
अपनी सारी क्षणिकाएं तुरंत भेज दीजिये
अपने संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ ......
harkirathaqeer@gmail.com
नन्ही सी परिभाषा ,गागर में सागर.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है!
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
I like above the pictures. It's great stuff.
ReplyDeleteखूबसूर है प्रेम की यह परिभाषा।
ReplyDeleteरक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
ReplyDeletehats off u mam
ReplyDeletesuperb :)
पूजा जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
आपका सदैव स्वागत है.
हरकीरत ' हीर' जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.
आपकी सुधी टिप्पणी के लिए आभारी हूं.
सपना निगम जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
अमरेन्द्र अमर जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को पसंद करने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...
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ReplyDeleteI am very glad to see your comment on my poem. Hearty thanks.
Always welcome your comments on my blogs.
देवेन्द्र पाण्डेय जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
एस एन शुक्ला जी,
ReplyDeleteआपको भी रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
Manish Kr. Khedawat ji,
ReplyDeleteI am very glad to see your comment on my poem. Hearty thanks.
Always welcome your comments on my blogs.
आप कम से कम शब्दों में गहरी गहरी बातें समझा देती हैं वह भी प्रेम से प्रेम की ।
ReplyDeleteआशा जी.
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.
आपकी सुधी टिप्पणी के लिए आभारी हूं.
शून्य से सौन्दर्य की अनुभूति एक अदभुत कल्पना है शरद जी..
ReplyDeleteसाधु साधु
मुझे आपका ई मेल आई डी दीजिये.. वेबकास्टिंग के लिये
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeletebahut sahi hai ,sundar ,swatantrata divas ki dhero badhai .
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाईयां.
ReplyDeletebahut sunder abhivekti.....kam shbdon ki...
ReplyDeleteगिरीश"मुकुल" जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद .
यशवन्त माथुर जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को सराहने के लिए हार्दिक आभार।
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
ज्योति सिंह जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को सराहने के लिए हार्दिक आभार।
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
कुंवर कुसुमेश जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें...
सुमन जी,
ReplyDeleteआपको मेरी कविता पसन्द आई यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है... हार्दिक धन्यवाद!
अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें...यहाँ देर से आने पर क्षमा भी करें.
ReplyDeleteनीरज
It looks like I am very late to comment on it.. but anyways
ReplyDeletebrilliantly written as always and with simplicity a great message :)
नीरज गोस्वामी जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
Jyoti Mishra ji,
ReplyDeleteI feel honored by your comment.
Hearty thanks!!!
You're always welcome.
I am Speachlesss....
ReplyDeleteboletobindas,
ReplyDeleteHearty thanks for your valuable comment !
You're always welcome.
अनूठी परिभाषा.अति सुंदर.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है यह मौन अभिव्यक्ति प्रेम की
ReplyDeleteकृपया नीचे दिए लिंक पर एक बार दस्तक दें
MITRA-MADHUR: व्यंगात्मक क्षणिकाएं......
कृपया नीचे दिए लिंक पर एक बार दस्तक दें
ReplyDeleteMITRA-MADHUR: व्यंगात्मक क्षणिकाएं......
अरुण कुमार निगम जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को सराहने के लिए हार्दिक आभार।
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
नीलकमल वैष्णव जी,
ReplyDeleteयह जानकर प्रसन्नता हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई....
हार्दिक धन्यवाद .
नीलकमल वैष्णव जी,
ReplyDeleteआमंत्रण के लिए हार्दिक धन्यवाद .
Bahut khub!
ReplyDeleteडॉ भावना जी,
ReplyDeleteयह जानकर सुखद अनुभूति हुई कि आपको मेरी कविता पसन्द आई.
मेरे ब्लॉग पर फिर आने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
दिल को छुं गई आपकी रचना !
ReplyDeleteइन्द्रनील जी,
ReplyDeleteअनुगृहीत हूं आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए...
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
दिल ही दिल की समझे परिभाषा.
ReplyDeleteमौन ही बेहतर प्यार की भाषा.
राहुल पालीवाल जी,
ReplyDeleteमेरी कविता को सराहने के लिए हार्दिक आभार।
कृपया इसी तरह संवाद बनाए रखें....
शरद जी सही कहा आपने मौन निहारना
ReplyDeleteइससे बडी अभिव्यक्ति हो ही नही सकती।
मेरी रचना मेरी आँखों में पढो
अवश्य पढिये अच्छी लगेगी।
धन्यवाद।
The silent expression of love is amazing and thus the love that is explained by your silence makes you get more deeply in touched with the one you love. Thanks for sharing it here.
ReplyDeletewebhosting
beautiful blog...
ReplyDeleteBest Advertising Agency
I like the profitable data you give in your articles. I'll bookmark your weblog and check again here every once in a while. I am sure I'll take in an enormous measure of new stuff fitting here! Favorable circumstances for the going with!!
ReplyDeleteZenyataa shoes