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Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
ये किसका अफ़साना है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
उसने जाने क्या समझा है, उसने जाने क्या माना है?
मैंने तो कुछ किया नहीं है, फिर ये किसका अफ़साना है?
सिर्फ़ रात को नहीं टूटते, दिन में भी गिरते हैं तारे
सूरज वाले आसमान पर उनका भी आना-जाना है।
सब अपने-अपने हिस्से के दुख-सुख झेल रहे सदियों से
जीवन फिर भी बुनता रहता, रिश्तों का ताना-बाना है।
अफ़वाहों की गर्म हवा में सच्चाई ही झुलसा करती
सबके अपने मानक ठहरे, सबका अपना पैमाना है।
उसकी शोहरत उसे मुबारक़, मेरी गुमनामी मुझको
इस दुनिया के रंचमंच पर, अभिनय करना, खो जाना है।
‘शरद’ धूप की नरमाहट को गले लगाये बैठी है जो
इसी धूप को अगले मौसम, शोला-शोला हो जाना है।
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह 'पतझड़ में भीग रही लड़की' से)
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