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05 March, 2022

नन्हा शेवचेन्को | कविता | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


नन्हा शेवचेन्को
        - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

यह बात नहीं है
युक्रेनी कवि
तरास शेवचेन्को उर्फ़
कोबज़ार तरास की
जो जन्मा
प्रथम विश्व युद्ध के प्रारंभ में
और चला गया
द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत

उसने देखा था त्रासदी
दोनों विश्व युद्धों की
और कहा बस,
अब नहीं
और नहीं
और युद्ध नहीं चाहिए

आज एक शेवचेन्को
भर्ती है अस्पताल में
हो चुका अनाथ
शायद अपनी एक टांग भी
खो दे
यह नन्हा बालक
शेवचेन्को है,
तरास शेवचेन्को नहीं

जिसने
होश आते ही पुकारा था -
मां को
पिता को
दादी को
और पौधे को

हां, उसने लगाया था
एक पौधा
बाल्कनी के गमले में
और सोचा था
बड़ा हो जाएगा पौधा
रातोंरात

एक मिसाइल-रॉकेट से
खण्हर हो गया उसका घर
ध्वस्त हो गई बाल्कनी
गमले और पौधे का
पता ही नहीं
नन्हा शेवचेन्को
समझ जाए शायद
इस युद्ध के बाद
रातोंरात पेड़ बड़े नहीं होते
छिड़ जाते हैं युद्ध रातोंरात
और
सब कुछ तबाह हो जाता है
रातों-रात

नन्हा शेवचेन्को
अगर बचा रहा
तो समझ जाएगा सब कुछ।
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