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13 August, 2021

मन का प्लेनेटेरियम | कविता | डॉ शरद सिंह

मन का प्लेनेटेरियम
           - डॉ शरद सिंह

घने, काले बादलों से
आच्छादित आकाश
खो देता है नीलापन
तब कहां बिसात
सूरज, चांद, तारों की
कि दिखा सकें
अपना चेहरा

मगर 
मन के
प्लेनेटेरियम में
दिनदहाड़े
चमकते, धधकते
लुभाते, बुलाते
मनचाहे ग्रह-नक्षत्र,
कभी-कभी 
आवारा उल्लकाएं भी
गुज़र जाती हैं
बिलकुल क़रीब से

वहां है
 दूरबीन
'हब्बल'  से भी 
अधिक शक्तिशाली
मन देख सकता है
हज़ारों आकाशगंगाओं के 
पार भी
कुछ भी

पर छू नहीं सकता
चाह कर भी
बेचारा
लाचार मन।
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