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06 August, 2021

नॉस्टैल्जिक बारिश | कविता | डॉ शरद सिंह

नॉस्टैल्जिक बारिश
           - डॉ शरद सिंह

लगातार
एक सप्ताह तक
चलने वाली बारिश
हो जाती है नॉस्टैल्जिक
करने लगती है उदास
तिरने लगते हैं
अवसाद के बादल
बैठक से शयनकक्ष तक

सीलते हुए शब्द
एक गीलापन
रख देते हैं कानों में
खारे आंसुओं की तरह
और भीग जाता है
पूरा घर
मन के भीतर का

सीलन की गंध
उठने लगती है 
उम्मींद के
हर कोने से
काम नहीं आता
तसल्ली का
एयर प्यूरीफायर

कंचे बना कर 
खेलने को
दिल करता है
शुद्ध, सफ़ेद
फिनायल गोलियां
बचपन के उस
काल्पनिक साथी के साथ
जो घनी बारिश में
दिखता है अकसर
भीगे लिबास में
लापरवाह-सा

मैं भी हो जाऊं अवसादी
इससे पहले 
या तो सीख लूं
लापरवाह होना
या फिर 
थम जाए बारिश
मेरी हथेलियों की
तमाम लकीरें धुलने से पहले।
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