04 October, 2024

कविता | स्त्री पाठ 1 | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

स्त्री पाठ
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
एक स्त्री में
कभी पढ़ो 
एक स्त्री को
दुर्गा सप्तशती की तरह
तब एहसास होगा 
एक स्त्री में 
देवीत्व का।

कभी देखो एक स्त्री को
मंगलदीप में प्रदीप्त
बाती की तरह
तब दिखेगा रूप
एक स्त्री में 
देवीत्व का।

कभी सोचो एक स्त्री को
अपने पवित्र विचारों 
की तरह
तब महसूस होगा
एक स्त्री में
देवीत्व का।

किसी एक नवरात्रि में
पहचानना सीखो तो
एक स्त्री को
पुरुषवादी चश्मा उतार कर।

तब कहना-
'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः'।।

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01 October, 2024

कविता | ख़ुद को बचा सकती थी वो | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता
 ख़ुद को बचा सकती थी वो
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कॉल सेंटर से
देर रात
ड्यूटी कर
लौटती जवान लड़की
कैब से उतर कर
नहीं तय सकी
अपने घर का
बीस क़दम का फ़ासला
धुंधले लैम्पपोस्ट तले
जकड़ लिया
चार हाथों ने उसे
बढ़ती चली गई
घर से उसकी दूरी
वह चींख नहीं सकी
पर
याद आए उसे
कुछ पैंतरे
जो देखे थे उसने
इंटरनेट पर
किया था अभ्यास
अपने कमरे में

लड़की ने बटोरा साहस
चाहती थी बचना वह
तभी थप्पड़ मारते 
दांत किटकिटाते 
गालियों की बौछार करते 
चींखा एक दरिंदा-
"लड़की हो कर 
मुझसे टकराएगी?
@#@ तेरी ये हिम्मत!"

"लड़की हो कर..." 
सुनते ही
टूट गई 
उस लड़की की हिम्मत
सारे प्रतिबंध 
इन्हीं शब्दों के साथ  
उसने सुने थे बचपन से
यदि सारे प्रतिबंध 
याद न आते उसे
न दबाव बनाते  
उसके कमज़ोर
यानी लड़की होने का
तो उस रात
ख़ुद को बचा सकती थी वो।
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