10 December, 2025

शायरी | अलाव | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

वो जो फुटपाथ पे  रातों को  ठिठुरते हैं पहर
उनके आगे कोई रख जाए अलावों का सहर
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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05 December, 2025

कविता | कॉफी पर चांद | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता 

कॉफी पर चांद
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

आज रात 
चांद ने
बजाई 
मेरे घर की कॉलबेल
कड़ाके की ठंड में
दरकार थी उसे
एक कप कॉफी की
अधकटे नीम की 
शाख पर बैठ कर
पीना चाहता था 
सफ़ेद मग में

एक ख़ामोशी तैरती रही
धरती से आकाश तक
चर्चा होती है चाय पर
कॉफी पर नहीं
सिर्फ़ उठता रहा धुआं
हमारे मग से
जैसे हैशटैग हो 
कोहरे का।
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Photo by Dr (Ms) Sharad Singh

13 November, 2025

कविता | अन्न के पास बैठी कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता 
अन्न के पास बैठी कविता
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अन्न के पास बैठी 
कविता
सुनती है
भूख की ध्वनियां,
महसूस करती है
खाली पेट वाली
आंतों की कुलबुलाहटें,
मुट्ठी भर दानों की इच्छाएं,
अचरज होता है उसे
काग़ज़ के नोटों की शक्ति पर
वे नहीं 
तो
सामने रखा अन्न
हो कर भी नहीं

अन्न, भूख और रोटी का
समीकरण
रखता है आबाद
देह का बाज़ार,
इंसानों की मंडी,
कर्ज का बोझा
और
लाचारी का सबक

उस कविता को
बहुत कुछ
देखना, सुनना
और समझना है अभी।
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15 October, 2025

कविता | #सच 3 - डॉ (सुश्री) शरद सिंह


कविता | #सच 3
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हम 
इतनी शिद्दत से 
ढूंढते रहते हैं
सुख
कि 
पता ही नहीं चलता  
कब 
न्योता दे बैठते हैं
दुख को।
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14 October, 2025

कविता | #सच 2 | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता | #सच 2
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

एक टूटे हुए कप की तरह 
खंडित ज़िन्दगी
अपने वज़ूद में 
होती है 
और नहीं भी
कबर्ड से कूड़ादान 
तक की यात्रा
किसी शवयात्रा से
कंम नहीं
यह जानता है 
वह टूटा हुआ कप
जो किसी हाथों में सजता था 
होठों से लगता था
मगर खंडित होते ही 
हो गई 
उसकी उपयोगिता भी ख़त्म
ठीक ऐसे ही 
वह खण्डित ज़िन्दगी भी
रहती है फ़िजूल
बावजूद जीए जाने के।
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13 October, 2025

कविता | #सच 1 | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता | #सच 1
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

डूबने के लिए
एक धक्का
काफ़ी है
टूटने के लिए
एक झटका
काफ़ी है
यह जानता है हमेशा 
डूबाने वाला 
तोड़ने वाला
डूबने या टूटने वाला नहीं।
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20 August, 2025

शायरी | तिजारत | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है-
उठाना   गिराना,  गिराना   उठाना
यही   खेल   रचता  रहा है ज़माना
मुहब्बत  के  रिश्ते  तिजारत  हुए हैं
सभी  चाहते  हैं  नफ़ा  ही  कमाना
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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