18 February, 2025

शायरी | सियासत | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है -
सियासत, हुक़ूमत का क़िस्सा अजब है 
जो इसका हुआ वह किसी का न होगा।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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17 February, 2025

ग़ज़ल | तनहाई है - डॉ शरद सिंह

ग़ज़ल :  तनहाई है
          - डॉ शरद सिंह
चौतरफा   सन्नाटा है,    तनहाई है 
देखो, क़िस्मत कहां मुझे ले आई है 

दीवारों से बातें करना कठिन हुआ
मेरे  दुखड़े  से  छत  भी   घबराई है 

हरपल आंखों में आंसू भर आते हैं
बेबस दिल  की ये कैसी भरपाई है

झूठे हर्फ़ों  की  इतनी  भरमार हुई
स्याही भी काग़ज़ से अब शरमाई है

"शरद" हौसले की पतवारें साबुत हैं
कश्ती   भर   चट्टानों  से  टकराई है
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06 February, 2025

कविता | लिबास | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

लिबास
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
इक बिजूका का 
लिबास
हो गई है
ज़िंदगी मेरी
जिसके भीतर 
थीं कभी 
देह
धड़कने वाली
श्वास की ताप से
गरमा के
संवरने वाली,
आज, पर
उस लिबास के भीतर
एक निस्पंद देह रहती है
जो अनन्त दूरियों 
को सहती है
देखते हैं ये
चलेगा कब तक
इक बिजूका को
ढंकेगा कब तक...?
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03 February, 2025

कविता | वसंत | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं❗️ 
🌻🌹🌻🌹🌻🌹🌻
कविता
वसंत
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
वसंत
प्रस्फुटन है प्रकृति का
उद्घोष है रंगों का
शुभ की आकांक्षा का
लावण्य का, लालित्य का
वसंत
उमंग है, उल्लास है, 
उत्कंठा है
हृदय में निहित
सुप्त संवेगों का जागना है
अंगड़ाई ले कर
वस्तुतः
वसंत
तादात्म्य है 
प्रेम से प्रकृति का।
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02 February, 2025

कविता | कांटे में फंसे शब्द | डॉ (सुश्री) शरद सिंह


कविता
कांटे में फंसे शब्द
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कल ही तो बात है
संवाद के शब्द
विचारों के
थिर पानी में
बनाने लगे थे वलय
धीरे बढ़ती गई
तरंगों की आवृतियां
सच-झूठ की छन्नी
नहीं लग पाती है ताल में
सिर्फ़ लगता है जाल
मछलियां पकड़ने वाला
महीन जाल और मछेरा
मछली कहां समझती
उसके इरादे?

जाल से बच भी जाए
तो भरोसे की मछली को
नहीं दिखता है कांटा
और पता चलते-चलते
हो चुकी होती है देर
इतनी देर कि
केंचुआ-शब्दों में छिपे कांटे में
फंस कर
विश्वास के शब्दों से
रिसने लगता है रक्त
जल-तरंगें देखती हैं
एक और विश्वासघात

पर कुछ नहीं कर सकती
वर्तुल लहरें
भरोसा टूट चुका है
मछली मर चुकी है
रिसते रक्त के साक्ष्य
घुल गए हैं पानी में
और
बेदाग़ मछेरा
गदगद है एक नन्हीं
कमजोर मछली को मार कर

कांटे में फंसे शब्दों की चीत्कार
भला कौन सुनता है?
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26 January, 2025

गणतंत्र हमारा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह 🇮🇳

Gantantra Hamara, Dr (Ms) Sharad Singh
गणतंत्र हमारा
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह

आजादी   का  भान  कराता  है गणतंत्र हमारा।
दुनिया भर  में  मान  बढ़ाता  है गणतंत्र हमारा।

खुल कर बोलें, खुल कर लिक्खें, खुल कर जीवन जी लें
सबको ये अधिकार  दिलाता  है गणतंत्र हमारा।

संविधान  के  द्वारा  जिसका सृजन हुआ जनहित में
प्रजातंत्र   की  साख  बचाता है  गणतंत्र हमारा।

धर्म, जाति  से  ऊपर   उठ   कर  चिंतन और मनन का
इक  सुंदर  संसार   बनाता  है  गणतंत्र हमारा। 
पूरब,   पश्चिम,    उत्तर,    दक्षिण - पूरी इस दुनिया  में
"शरद" सभी को सदा लुभाता है गणतंत्र हमारा।
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23 January, 2025

शायरी | मुस्कुराने | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हमारे  मुस्कुराने  को  अदा वो मानते हैं
वहीं, हम दर्द सारे दफ़्न रखना जानते हैं
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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