प्रेम सिखा देता है
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
वट वृक्ष की देह पर
बांधा गया
कच्चे सूतवाला
मनौती का धागा
अखिल ब्रम्हांड के
सुदृढ़ विश्वास को
समेटे रहता है
अपने कमजोर
कोमल रेशों में
तुलसी-चौरे पर
जलाया गया
माटी का
नन्हा दीप
असंख्य रश्मियों से
आमंत्रित करता है
शुभ और मंगल को
आम्रपत्रों का तोरण
करता है सुनिश्चित
प्रतीक्षित ईष्ट के
शुभागमन को
वह नहीं समझ सकता
इन चेष्टाओं के
तत्व को, सत्व को
जिसे समझ ही न हो
प्रेमासिक्त विश्वास की,
जबकि
प्रेम सिखा देता है
देवताओं को भी
रीझना, सींझना
और बन जाना
महारास रचाती
आत्मा का
परमात्मा।
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