उदासी
- डॉ शरद सिंह
कहने को एक शब्द है
उदासी
लेकिन इस शब्द के भीतर
है एक आदिम गुफा
जहां पुकारने पर
लौटती हैं
अपनी ही ध्वनियां
अपने कानों तक
एक कंपा देने वाली
अनुगूंज के साथ
इस शब्द के भीतर
हैं रेल की ऐसी पटरियां
जो अब काम नहीं आतीं
जिन पर नहीं गुज़रती
कोई रेल
बेलिहाज़ वनस्पतियों के बीच दबे
स्लीपर्स
साथ छोड़ने लगते हैं
पटरियों का
बेजान पटरियां सिसक भी नहीं पातीं
इस शब्द के भीतर
है अबूझ सन्नाटा
शोर की भीड़ में भी
एक जानी-पहचानी ध्वनि को
ढूंढ पाने में असमर्थ
सन्नाटा
किसी पागलपन की हद तक
उपजा हुआ सन्नाटा
निगल सकता है
हरेक शब्द को
सिवा इस शब्द के
इस शब्द के भीतर
है कांच की तरह टूटे हुए
ख़्वाब की किरचें
जो लहूलुहान कर देती हैं
एहसास के
हाथों को, पैरों को
बल्कि समूचे जिस्म को
लहू रिसता है बूंद-बूंद
आंसू बन कर
और देता है जिस्म के
ज़िन्दा रहने का सबूत
कैसे कहूं कि उदासी क्या है?
--------------
#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सच ..... उदासी शब्द जितना कहना सरल है समझना उतना ही कठिन है .
ReplyDeleteइस शब्द के भीतर
ReplyDeleteहै कांच की तरह टूटे हुए
ख़्वाब की किरचें
जो लहूलुहान कर देती हैं---गहन रचना...।
निष्पत्ति न पाने वाली अतृप्त तृषा है उदासी।
ReplyDeleteउदासी एक अंधेरे कमरे में उस चीज़ को ढूँढने का नाम है जो वहाँ कभी थी ही नहीं, इसलिए इससे जितना जल्दी छुटकारा पा लें उतना ही बेहतर है
ReplyDelete"इस शब्द के भीतर
ReplyDeleteहैं रेल की ऐसी पटरियां
जो अब काम नहीं आतीं
जिन पर नहीं गुज़रती
कोई रेल
बेलिहाज़ वनस्पतियों के बीच दबे
स्लीपर्स
साथ छोड़ने लगते हैं
पटरियों का
बेजान पटरियां सिसक भी नहीं पातीं"- उदासी के बहाने एक अनूठा बिम्ब .. और ..
"लहू रिसता है बूंद-बूंद
आंसू बन कर
और देता है जिस्म के
ज़िन्दा रहने का सबूत" - एक अतुल्य साहित्य-शिल्प ...
बहुत सुंदर
ReplyDeleteअद्भुत!
ReplyDeleteशरद जी सच उदासी एक शब्द नहीं है ,आतर्नाद है सन्नाटे की चीख है,एक अदीढ़ घाव है।
अप्रतिम सृजन।