"नवभारत" के रविवारीय परिशिष्ट में आज "लड़कियां किस्म-किस्म की" शीर्षक कविता प्रकाशित हुई है। आप भी पढ़िए...
हार्दिक धन्यवाद #नवभारत 🙏
लड़कियां किसम-किसम की
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
मूक दर्शक से हम
देखते हैं उन्हें
एक तारीख़
एक दिन
एक समय में -
एक लड़की
रचती है इतिहास
ओलंपिक में
एक लड़की
जोहती है बाट
सज़ा सुनाए जाने की
अपने बलात्कारी को
एक लड़की
होती है शिकार
बलात्कार का
एक लड़की
करती है सर्फिंग
इंटरनेट पर
एक लड़की
होती है ब्लैकमेल
प्रेम-डूबे वीडियो की
अपलोडिंग पर
एक लड़की
होती है भर्ती
पुलिस में
एक लड़की
बेचती है देह
रेडलाईट एरिया में
एक लड़की
करती है संघर्ष
जीने का
एक लड़की
ढूंढती है तरीक़े
आत्महत्या के
एक लड़की
ख़ुश है अपने
लड़की होने पर
एक लड़की
करती है विलाप-
'अगले जनम मोहे
बिटिया न कीजो'
देखो तो,
इस दुनिया में
कितनी
किसम-किसम की हैं
लड़कियां,
समाज के सांचे
और
ढांचे के अनुरूप
यानी,
लड़कियां
हमेशा
एक-सी नहीं रह पाती
हमारे बीच,
एक ही समय में।
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