13 November, 2025

कविता | अन्न के पास बैठी कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता 
अन्न के पास बैठी कविता
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अन्न के पास बैठी 
कविता
सुनती है
भूख की ध्वनियां,
महसूस करती है
खाली पेट वाली
आंतों की कुलबुलाहटें,
मुट्ठी भर दानों की इच्छाएं,
अचरज होता है उसे
काग़ज़ के नोटों की शक्ति पर
वे नहीं 
तो
सामने रखा अन्न
हो कर भी नहीं

अन्न, भूख और रोटी का
समीकरण
रखता है आबाद
देह का बाज़ार,
इंसानों की मंडी,
कर्ज का बोझा
और
लाचारी का सबक

उस कविता को
बहुत कुछ
देखना, सुनना
और समझना है अभी।
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15 October, 2025

कविता | #सच 3 - डॉ (सुश्री) शरद सिंह


कविता | #सच 3
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

हम 
इतनी शिद्दत से 
ढूंढते रहते हैं
सुख
कि 
पता ही नहीं चलता  
कब 
न्योता दे बैठते हैं
दुख को।
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14 October, 2025

कविता | #सच 2 | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता | #सच 2
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

एक टूटे हुए कप की तरह 
खंडित ज़िन्दगी
अपने वज़ूद में 
होती है 
और नहीं भी
कबर्ड से कूड़ादान 
तक की यात्रा
किसी शवयात्रा से
कंम नहीं
यह जानता है 
वह टूटा हुआ कप
जो किसी हाथों में सजता था 
होठों से लगता था
मगर खंडित होते ही 
हो गई 
उसकी उपयोगिता भी ख़त्म
ठीक ऐसे ही 
वह खण्डित ज़िन्दगी भी
रहती है फ़िजूल
बावजूद जीए जाने के।
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13 October, 2025

कविता | #सच 1 | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

कविता | #सच 1
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

डूबने के लिए
एक धक्का
काफ़ी है
टूटने के लिए
एक झटका
काफ़ी है
यह जानता है हमेशा 
डूबाने वाला 
तोड़ने वाला
डूबने या टूटने वाला नहीं।
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20 August, 2025

शायरी | तिजारत | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अर्ज़ है-
उठाना   गिराना,  गिराना   उठाना
यही   खेल   रचता  रहा है ज़माना
मुहब्बत  के  रिश्ते  तिजारत  हुए हैं
सभी  चाहते  हैं  नफ़ा  ही  कमाना
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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27 July, 2025

मेरे दो दोहे - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मेरे दो दोहे....
तेरी आंखों से  बही, भीगे   मेरे   गाल।
अश्रु-धार करने लगी, ऐसे विकट कमाल।।1

तेरे-मेरे बीच की  दूरी,  सौ-सौ  मील।
फिर भी किरणें हैं यहां, जले वहां कंदील।।2
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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07 July, 2025

लिहाज़ है समझो | शायरी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

मेरी ख़ामोशी 
लिहाज़ है समझो
लिहाज़ उतरा तो
बेपर्दा हो जाएंगे कई।
         - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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