Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
तो फिर चलो
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जंग खाए पुराने तालों
बंद दरवाज़ों
और यादों के पिटारों में
क्या कोई फ़र्क़ होता है ?
नहीं तो !
रस्टिक-ताले खुलते नहीं
किसी भी चाबी से
तोड़ दिए जाएं ताले गर,
दरवाज़े कराहते हैं खुलते हुए
कमरे के भीतर बसी बासी हवाओं का झोंका
भयावह बना देता है यादों को
तो फिर चलो,
बहुत पुरानी यादों को
कहीं कर दें विसर्जित
उससे नई यादों को संजोने के लिए
..... कुछ देर मुस्कुराने के लिए।
- डॉ. शरद सिंह
#SharadSingh #Poetry #MyPoetry #World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh
#मेरीकविताए_शरदसिंह #मुस्कुराने #चाबी #ताले #दरवाज़े #यादों #मुस्कुराने
रस्टिक-ताले खुलते नहीं
किसी भी चाबी से
तोड़ दिए जाएं ताले गर,
दरवाज़े कराहते हैं खुलते हुए
कमरे के भीतर बसी बासी हवाओं का झोंका
भयावह बना देता है यादों को
तो फिर चलो,
बहुत पुरानी यादों को
कहीं कर दें विसर्जित
उससे नई यादों को संजोने के लिए
..... कुछ देर मुस्कुराने के लिए।
- डॉ. शरद सिंह
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