ठंड खिल रही धीरे-धीरे।
धूप ढल रही धीरे-धीरे।
दिन तेजी से दौड़ लगाता
रात चल रही धीरे-धीरे।
कोट, पुलोवर, स्वेटर वाली
सुबह मिल रही धीरे-धीरे।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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ग़ज़ल / शायरी
दिल पर पत्थर रख कर जीना,
ये भी कोई जीना है?
कोई मुझे बताये आख़िर
कितने आंसू पीना है?
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
अमृत वर्षा कर रहा है, पूनम का चांद।
मन को हर्षित कर रहा है, पूनम का चांद।
शारदीय इस रात्रि की हुई कालिमा दूर
जग को जगमग कर रहा है,पूनम का चांद।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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