[1]
कौन अपना है कौन, कौन है पराया आज
रंग की तरंग में सभी पे रंग डारिए
होली की हुलाल में, उमंग की उछाल में
दुखी जन प्राणियों को शोक से उबारिए
कोरोना से बचने को, दूरी भी जरूरी है
सम्हल के होली, खूब खेलने विचारिए
भूल भेदभाव, छल, माथे पे तिलक मल
एकता के आईने में सबको उतारिए
[2]
धूप फागुनी जो हुई, वन में पलाश खिले
नदियों के तट पर सरपत खूब हिले
भिन्न-भिन्न जात धर्म, भिन्न समुदाय वर्ग
घोर आत्मीयता के साथ आज हैं मिले
लाल हैं गुलाल से सभी के गाल-भाल आज
हो रहे साकार सुख सपनों के क़ाफ़िले
मन *'घनानंद' और तन ये 'सुजान' हुआ
प्रेम का कवित्त बना भूल के तमाम गिले
[3]
ऐसे रास रंग में, उमंग लिए आओ पिया
**'केशव' मानिंद रस, छंद बन जाओ ज़रा
मैं बनूं तुम्हारी प्रेयसी 'प्रवीण' नाच उठूं
मेरे सुर - ताल से धनक उठे ये धरा
आज है इजाजत समाज से रिवाज़ से भी
हम दोहराएं इतिहास से यह सुनेहरा
'शरद' के राग में है नूतन विहाग सुनो
जैसे सपनों में दिखे इंद्रधनुषी रंग भरा
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*घनानंद (1673- 17 60) रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि माने जाते हैं। घनानंद द्वारा लिखित कई ग्रन्थ है। सबसे पहले भारतेन्दु हरिशचन्द्र ने ’सुजान शतक’ नामक पुस्तक में घनानंद कविताओं का संकलन किया। इसके अतिरिक्त ’सुजानहित’तथा ’सुजान सागर’ नामक संकलन भी प्रकाश में आया। यह माना जाता है कि "सुजान" घनानंद की प्रेयसी थीं।
**रीतिकालीन कवि केशव (जन्म 1555 ई.) ओरछा के महाराज इन्द्रजीत सिंह के समय के प्रमुख कवि थे। इन्होंने ब्रज भाषा में रचना की। यद्यपि ये संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे तथापि उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ हिन्दी है जिसमें बुन्देली, अवधी और अरबी-फारसी शब्दों का समावेश है। कहा जाता है कि ओरछा की राजनर्तकी रायप्रवीण से इनके प्रेम संबंध थे। रायप्रवीण स्वयं एक उच्चकोटि की कवयित्री थीं।