इश्क़ बिना
- डॉ शरद सिंह
पुरानी क़िताब के पन्नों-सी
पीली पड़ी यादें
अचानक हरियल हो उठीं
जब मैंने सोचा
अपने कॉलेज के दिनों को
ढीली बेलबाटम और
कसी शर्ट
पोनीटेल में कसे बाल
हाथ में नोटबुक और बॉलपेन
सब कुछ बेपरवाह-सा
पर, चाक-चौबंद क्लासेज
और नोट्स
आश्चर्य कि
'लव लेटर्स' के बाद भी
मुझे छू न सका था
इश्क़
सहेलियां और उनके प्रेमी
डिगा नहीं पाए थे
मेरे भीतर के खिलंदड़ेपन को
न होना था, न हुआ
इश्क़
फिर भी
कुछ बात थी उन दिनों
पता नहीं क्या, पर कुछ तो थी
यूं तो था उन दिनों मुद्दा -
ईराक, ईरान,
गाज़ापट्टी का
था उन दिनों नाम -
आयातुल्लाह खुमैनी,
फीडेल कास्ट्रो का
और था मसला यहां -
बिहार के भूमिहारों का
दलितों का
स्त्रियों का
फिर भी
हम ख़ुश थे अपने आप में
इतने ख़ुश कि
आज भी हरिया उठता है मन
उन दिनों को याद कर
याद ही तो है
जो निर्बाध, निडर, निःशंक
आती-जाती रहती है,
दिल से दिमाग़ तक
छाती रहती है
वक़्त की क़िताब भले पीली हो
पर रहती हैं यादें
हमेशा हरी, ताज़ा
और ओस में नहाई हुई
इश्क़ बिना भी।
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पुरानी यादों की सुमधुर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद अनुपमा त्रिपाठी जी 🙏
Deleteबहुत सुंदर यादों का सरमाया आपकी यह कविता दिल में उतर गयी, काफ़ी कुछ अपनी सी लगी।अहसासों की सुमधुर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद श्री जिज्ञासा सिंह जी🙏
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुक्रिया सुमन जी 🙏
Deleteसादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (25-06-2021) को "पुरानी क़िताब के पन्नों-सी पीली पड़ी यादें" (चर्चा अंक- 4106 ) पर होगी।चर्चा का शीर्षक आपकी कविता 'इश्क बिना' से लिया गया है ।
चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
यह एहसास मेरे लिए भाव विभोर कर देने वाला है कि मेरी पंक्तियों को चर्चा का शीर्षक आपने बनाया है आपका हार्दिक आभार मीणा भारद्वाज जी 🙏🙏🙏
Deleteचर्चामंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏
बहुत सुंदर
ReplyDeleteयाद ही तो है
ReplyDeleteजो निर्बाध, निडर, निःशंक
आती-जाती रहती है,
दिल से दिमाग़ तक
छाती रहती है
वक़्त की क़िताब भले पीली हो
पर रहती हैं यादें
हमेशा हरी, ताज़ा
और ओस में नहाई हुई
इश्क़ बिना भी।
वाह
याद ही तो है
ReplyDeleteजो निर्बाध, निडर, निःशंक
आती-जाती रहती है,
दिल से दिमाग़ तक
छाती रहती है ।
वाह !
बहुत ही खूब ।
सादर
बहुत खूबसूरत एहसासों से ओत प्रोत लेखन
ReplyDeleteवक़्त की क़िताब भले पीली हो
ReplyDeleteपर रहती हैं यादें
हमेशा हरी, ताज़ा
और ओस में नहाई हुई
इश्क़ बिना भी।
यादें तो जीवन का सरमाया होता है,कहाँ कभी पीछा छोड़ता है,हृदयस्पर्शी सृजन,सादर नमन शरद जी
बहुत खूब शदर जी, क्या ही सुदरता से यादों का पिटारा खेल दिया---वाह
ReplyDeleteयाद ही तो है
जो निर्बाध, निडर, निःशंक
आती-जाती रहती है,
दिल से दिमाग़ तक
छाती रहती है
वक़्त की क़िताब भले पीली हो
पर रहती हैं यादें ---सच में वक्त की किताब कभी अपनी यादों को कहीं जाने ही नहीं देती
याद ही तो है
ReplyDeleteजो निर्बाध, निडर, निःशंक
आती-जाती रहती है,
दिल से दिमाग़ तक
छाती रहती है
वक़्त की क़िताब भले पीली हो
पर रहती हैं यादें
हमेशा हरी, ताज़ा
और ओस में नहाई हुई
इश्क़ बिना भी।
सुन्दर अभिव्यक्ति.. बेहद सटीक पंक्तियाँ...
वक़्त की क़िताब भले पीली हो
ReplyDeleteपर रहती हैं यादें
हमेशा हरी, ताज़ा
और ओस में नहाई हुई
इश्क़ बिना भी। वाह बेहतरीन रचना आदरणीया।