13 April, 2018
06 April, 2018
तेरा का पहाड़ा ... डॉ शरद सिंह
Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
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बड़ा कठिन रहा है
मेरे लिए
तेरा (तेरह) का पहाड़ा
तेरा दूने होते ही
दोनों अंकों के चेहरे
हो जाते हैं परस्पर विपरीत
जैसे असहनीय हो
एक-दूसरे को देखना
तेरा तिया होते ही
बनना पड़ता है पिछल्लगू
एक को दूसरे का
बस,
आता है एक पल
सम्मुखता का
तेरा पंचे पैंसठ में
मगर फिर वही विलगाव
सचमुच बड़ा कठिन है
मेरे लिए
पढ़ना और याद रखना
तेरा का पहाड़ा।
- डॉ शरद सिंह
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04 April, 2018
गर्मियों की छुट्टियां ... डॉ शरद सिंह
Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh |
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दोपहर
तपती, झुलसती
डोलती है
गर्म सांसें छोड़ती
कुछ बोलती है
खोलती है याद की
गठरी पुरानी
है बंधा जिसमें
विहंसता बालपन
बंद कमरों में
था गुज़रता ग्रीष्म-दिन
और कटता था जो
उपन्यासों के संग
वह युवापन।
अब न वैसी छुट्टियां
न ही वैसी फ़ुरसतें
है अगर कुछ तो -
तपती गर्मियां हैं
याद की गठरी उठाए पीठ पर!
- डॉ शरद सिंह
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