24 February, 2018

ज़िंदगी दिखती उदासी आजकल ... डॉ शरद सिंह

Shayari of Dr (Miss) Sharad Singh


अपने ग़ज़ल संग्रह " पतझड़ में भीग रही लड़की " में प्रकाशित एक ग़ज़ल के कुछ शेर...
 
ज़िंदगी दिखती उदासी आजकल
आस्था लगती धुआं सी आजकल
कंदराएं अब भली लगाने लगीं
हो गया मन आदिवासी आजकल

निर्जला व्रत कह दिया हमने मगर
आत्मा तक है पियासी आजकल
- डॉ शरद सिंह


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#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh

19 February, 2018

एक इस्माइली है ख़त अब तो ... डॉ शरद सिंह

Shayari of Dr (Miss) Sharad Singh
खूब रफ़्तार में हैं सब अब तो
एक इस्माइली है ख़त अब तो
इश्क़  गोया है एक पैकेज-सा
साथ होता है ब्रेक’अप अब तो
- डॉ शरद सिंह


17 February, 2018

रात एक प्रतीक्षा ... डॉ शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh
रात एक प्रतीक्षा
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किसी सूने स्टेशन के
प्लेटफार्म में बैठे हुए
प्रतीक्षा करना
विलम्ब से चल रही ट्रेन का
या फिर जाड़े की लम्बी रात में
स्वेटर के फंदों-सा
यादों को बुनना
और दे लेना खुद को तसल्ली
कि रात एक प्रतीक्षा ही तो है
नींद से जागने वाली सुबह की
और ट्रेन लेट ही सही, पर आएगी ही!
रूठना भूल कर लौटे हुए प्रिय की तरह ...

- डॉ शरद सिंह

15 February, 2018

उसकी यादों के मकां में ... डॉ शरद सिंह

Shayari of Dr (Miss) Sharad Singh
उसकी  यादों के  मकां में  है   बसेरा अब तो
कुछ तो ऐसा हो कि हो जाए वो मेरा अब तो
- डॉ शरद सिंह


14 February, 2018

यादों का पन्ना (आत्मकथात्मक कविता) ... डॉ शरद सिंह

 11 फरवरी 2018 को पाठकमंच की कविगोष्ठी में मैंने अपनी यह आत्मकथात्मक कविता पढ़ी थी ...
Dr (Miss)Sharad Singh

यादों का पन्ना
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         - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

खुली आज यूं ही
जो यादों की पुस्तक
दिया फिर किसी ने
बड़ी ज़ोर दस्तक
मुझे याद आई जन्म-भूमि ‘पन्ना’
जहां मैंने बचपन से
मां को पुकारा था ‘मैया’ और ‘नन्ना’
खिलौनों भरे वो तो दिन थे निराले
थे नाना के किस्से और मामा की बातें
पढ़ाई के दिन थे, कहानी की रातें
वो दीदी से झगड़े,
कभी भी न तगड़े
सदा साथ खेले
गए साथ मेले
वो खिपड़ी, वो गद्दा
वो छुवा-छुवाईल
वो काग़ज़ की नावें
और राकेट-मिसाईल
वो निब वाली पेनें
वो स्याही की दावात
कि ’अक्ती में आती थी  (’अक्षय तृतिया)
गुड्डे की बारात
वो पहाड़, वो कोठी,
वो ‘मज़ार साब’
न हिन्दू, न मुस्लिम
नहीं कोई रूआब
वो ढेरों ’मुकरबे (’मकबरे)
वो हनुमान मंदिर,
वो बाज़ार छोटा,
वो बल्देव मंदिर
वो हलवाई के शुद्ध पेड़े सलोने
वो लड्डू, कलाकंद, छ्योले के दोने
बहुत ही मधुर और मीठी थी दुनिया
वो बऊ कामवाली
थी इक उसकी टुनिया
जहां मेरा घर था
हिरणबाग था वो
सुना था -
कभी था वो हिरणों का बाड़ा
लगे है मगर अब तो बेहद उजाड़ा
कहीं खो गया मेरे बचपन का पन्ना
फटी डायरी, अब ने धेला, न धन्ना
कि यादों में वो आज भी है वहीं पर
रहेगा वो दिल में, रहूं मैं कहीं पर !
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Dr (Miss)Sharad Singh

Dr (Miss)Sharad Singh

Dr (Miss)Sharad Singh

Dr (Miss)Sharad Singh