25 June, 2022

ग़ज़ल | रिवायतें अब बदल रही हैं | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

रिवायतें अब   बदल रही हैं 
नए लिबासों में मिल रही हैं

अदब के  क़िस्से  हुए पुराने
बेअदबियां अब मचल रही हैं

ख़तो-क़िताबत चलन से बाहर
फ़िज़ाएं चैटिंग में ढल रही हैं।

जिसे भी देखो हुआ सियासी
हवाएं कैसी   ये चल रही हैं

"शरद" थकन का ना ज़िक्र लाओ
अभी तो सांसें सम्हल रही हैं
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11 June, 2022

ग़ज़ल | यूं लगेगा कि प्यार करता है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ग़ज़ल
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

यूं लगेगा कि प्यार करता है
इस सलीक़े से वार करता है

बात जज़्बे की मत करो उससे
रूह भी तार - तार  करता है

मुफ़लिसी झूठ-सी लगे उसको
दौलतें   जो   शुमार   करता है

वो कभी  सच  न  देख पाएगा
खु़द ही अपना हिसार करता है

और ये है 'शरद' का दिल पागल
जो  सदा   ग़म-गुसार  करता है
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*हिसार = क़िलेबंदी
*ग़म-गुसार = दुख-दर्द का बाँटने वाला, सहानुभूति प्रकट करने वाला

04 June, 2022

कविता | लाखा बंजारा झील | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | युवा प्रवर्तक

प्रिय मित्रों,  मेरी कविता "लाखा बंजारा झील" वेब मैगजीन "युवा प्रवर्तक" में आज प्रकाशित हुई है जिसके लिए मैं भाई देवेंद्र सोनी जी की हार्दिक आभारी हूं 🙏 
यह कविता आपके शहर की भी हो सकती है... इसे पढ़ें और महसूस करें...
इसे इस लिंक पर भी पढ़ सकते हैं..
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=570862761342376&id=108584627570194

आप सभी की सुविधा के लिए टेक्स्ट भी दे रही हूं.....
कविता
लाखा बंजारा झील
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

सूखी झील के 
रेगिस्तान में
देखा है
इन दिनों मैंने
शहर के गर्व नमी को
मछली-सा तड़पते हुए

झील
जो बनवाई 
एक बंजारे ने,
झील
जिसे रखने को जीवित
आत्मबलिदान किया
एक जोड़े ने
झील
जो हर बजट में
लिटाई जाती रही
कथित उद्धार के
ताबूत में

हर साल
चलते रहे फावड़े
उठती रहीं कुदालियां
श्रमदान की तस्वीरों से
सजते रहे अख़बार
गोया झील एक मंच थी
राजनीतिक नाट्यदल की,
बड़बोले समाजसेवियों की,
प्रशासन के झोलाछाप
उच्चाधिकारियों की।

जबकि
रिसता रहा
झील का लहू
गिरता रहा
ऑक्सीजन स्तर
मरते रहे जलजन्तु,
हम ख़ामोशी से 
पढ़ते रहे खबरें 
पल पल मरती झील की

झील
आज है
उद्धार के
ऑपरेशन टेबल पर
दरवाज़े पर जलती
लालबत्ती
कब होगी हरी?
पता नहीं !
ऑपरेशन 
कब होगा पूरा
पता नहीं !

हां,
मेरे शहर की झील
टंगी है इनदिनों
प्रशासनिक सूली पर
बाट जोहती
एक बार फिर
तरंगायित होने की
जल से, जीवन से।
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