आदिम बद्दुआएं
- डॉ शरद सिंह
दीवार के उधड़े हुए प्लस्तर से
झांकती हुई ईटों की तरह
बीते हुए सुखद पल
झांकते हैं
रुलाते हैं
अहसास कराते हैं
उनकी पीड़ाओं का-
जिनके परिजन मारे गए
नात्ज़ी कंसंट्रेशन कैम्प में
जिनके परिजन मारे गए
हीरोशिमा, नागासाकी में
जिनके परिजन मर गए
देश के बंटवारे में
जिनके परिजन मारे गए
ट्विन टॉवर पर हमले में
जिनके परिजन भूख से मर गए
सूडानी अकाल में
जिनके परिजन डूब गए
अवैध शरणार्थी नावों संग
जिनके परिजन मारे गए
इबोला, एंथ्रेक्स, कोरोना से
उन सभी बचे हुओं की
पीड़ा, क्रोध और अकेलापन
महसूस करती हूं आज
दिल की गहराईयों से
आत्मा की ऊंचाइयों तक
और निकलती है
हर सांस में
आदिम बद्दुआएं उनके लिए
जिन्होंने रचा मौत का तांडव
महज़ राजनीतिक
महज आर्थिक
महज अमानवीय लिप्सा के लिए।
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मार्मिक एवम मन को बेधती रचना ।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🙏
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५ -०६-२०२१) को 'बादल !! तुम आते रहना'(चर्चा अंक-४०८७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
चर्चा मंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता सैनी जी 🙏
Deleteहार्दिक आभार🙏🙏
आदिम बद्दुआएं उनके लिए
ReplyDeleteजिन्होंने रचा मौत का तांडव
महज़ राजनीतिक
महज आर्थिक
महज अमानवीय लिप्सा के लिए।
"ये बद्दुआएं" उन्हें जरूर लगेगी उन्हें चैन से नही जीने देगी इतनी आत्माएं तड़प रही है और जो तड़पते-तड़पते गई है उनकी आहें उन्हें भी तड़पाएंगी जरूर।
बेहद मार्मिक या यूँ कहे आपकी आहें बोल रही है इस रचना में ,आप अपना ख्याल रखें और इस गम से बाहर निकलने की कोशिश करें,परमात्मा आपको हिम्मत दें।
संघातिक!
ReplyDeleteवेदना अब चरम पर है विश्रांति ही सहारा बनेगी।
संवेदनाओं और दर्द से लबरेज मर्मस्पर्शी रचना।
धैर्य रखें।
सस्नेह।
मार्मिक । ये बद्दुआएं जरूरी है
ReplyDeleteसार्थक सृजन - - साधुवाद सह।
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