26 April, 2019
Dr (Miss) Sharad Singh poetry on Voter Awareness
मतदाता जगरूकता पर महिला जागरूकता गोष्ठी में डॉ (सुश्री) शरद सिंह ने अपने दोहे पढ़े...
23 April, 2019
20 April, 2019
मृत्यु (कविता) - डॉ शरद सिंह
Mrityu (Kavita) ... Poetry on Death by Dr (Miss) Sharad Singh |
मृत्यु
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अग्नि में जला दिया जाना
या सुला दिया जाना दो गज ज़मीन के नीचे
अनुष्ठान है देह की मृत्यु का
वहीं, बच रहना विचारों का
होना प्रवाहित
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
प्रतीक है अमरता का
वाचिक हो या मसि-कागद जीवी
रहता है जीवित विचारों में ढल कर
अंत और अनंत से परे
उस अथाह की तरह
जिस पर अवस्थित है यह पूरा ब्रह्माण्ड।
- डॉ शरद सिंह
18 April, 2019
08 April, 2019
कौन जाएगा भला ( ग़ज़ल ) ... - डॉ शरद सिंह
Kaun Jayega Bhala... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
कौन जाएगा भला उसको मनाने कोदिल नहीं करता हमारा सिर झुकाने को
इस क़दर जलने लगे हैं ख़्वाब आंखों में
अश्क़ की लहरें उठीं उनको बुझाने को
जो गिरा है मुफ़लिसी की ठोकरें खाकर
कौन झुकता है भला, उसको उठाने को
दर्द का इक कारवां, है यहां ठहरा हुआ
हो न हो, वो ही गया उसको बुलाने को
वक़्त ने देखा नहीं हमको कभी मुड़कर
याद क्यूं करना भला, गुज़रे जमाने को
- डॉ ( सुश्री ) शरद सिंह
04 April, 2019
मेरे ख़्वाबों के शहर का (ग़ज़ल) ... - डॉ शरद सिंह
Mere Khwabon Ke Shahar Ka ... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
मेरे ख़्वाबों के शहर का जो है पता तुझको
ज़रा बता भी दे अब उसका रास्ता मुझको
तू भी मिल-मिल के जमाने से आजमाता है
चाहता है जो सताना, तो फिर सता मुझको
तू नज़ूमी की तरह बांचता रहता है मुझे
मेरी तक़दीर में लिक्खा है क्या, बता मुझको
क्यूं लरज़ता है, झिझकता है, सहमता है भला
इश्क़ तुझको जो है मुझसे, तो ये जता मुझको
बंद बक्से में रखे ख़त की तरह क्या जीना
कर दे इक बार तो खुल के भी कुछ अता मुझको
- डॉ ( सुश्री ) शरद सिंह
नींद भी आती नहीं है (ग़ज़ल) ... - डॉ शरद सिंह
Neend Bhi Aati Nahin ... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh |
ग़ज़ल
कह दिया हमने हमारा दिल कभी दुखता नहीं हैमुस्कुराने से दिलों का टूटना छुपता नहीं है
नींद के खाते में चढ़ते जा रहे हैं ख़्वाब मेरे,
नींद भी आती नहीं है, कर्ज़ भी चुकता नहीं।
इस कदर बढ़ने लगा है दर्द अब तो ज़िन्दगी में
लाख थामों नब्ज़ लेकिन दर्द ये रुकता नहीं है
इस जमाने के चलन के साथ न चल पाए हम
कोशिशें तो की मगर ये सिर कहीं झुकता नहीं है
- डॉ ( सुश्री ) शरद सिंह
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