धूप बारिश के बाद की
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
कुछ अधिक
गरमाने लगी है
धूप
बारिश के बाद की
नमी, उमस
और उष्णता से भरी धूप
कर देती है व्याकुल
देहरी लांघते ही
धूप का काम है
तपना
वह तप रही है,
झुलसा रही है
अनावृत चेहरों को
चेहरे,
अपरिचित चेहरे
धूप के लिए भी
और
मेरे लिए भी,
भीड़ से गुज़रते हुए
हम नहीं देख पाते
चेहरों को
ठीक से
और देख भी लें
तो नहीं पढ़ पाते
उनकी अहमियत को
धूप भी नहीं पढ़ पाती
दिलों को
वरना
कर के महसूस
मेरे भीतर के
विसूवियस
मुझे
और न तपाती।
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