पृष्ठ

23 June, 2021

इश्क़ बिना | कविता | डॉ शरद सिंह


इश्क़ बिना 
      - डॉ शरद सिंह

पुरानी क़िताब के पन्नों-सी
पीली पड़ी यादें
अचानक हरियल हो उठीं
जब मैंने सोचा
अपने कॉलेज के दिनों को
ढीली बेलबाटम और
कसी शर्ट
पोनीटेल में कसे बाल
हाथ में नोटबुक और बॉलपेन
सब कुछ बेपरवाह-सा
पर, चाक-चौबंद क्लासेज
और नोट्स
आश्चर्य कि 
'लव लेटर्स' के बाद भी
मुझे छू न सका था 
इश्क़

सहेलियां और उनके प्रेमी
डिगा नहीं पाए थे
मेरे भीतर के खिलंदड़ेपन को
न होना था, न हुआ 
इश्क़
फिर भी 
कुछ बात थी उन दिनों 
पता नहीं क्या, पर कुछ तो थी

यूं तो था उन दिनों मुद्दा -
ईराक, ईरान, 
गाज़ापट्टी का
था उन दिनों नाम -
आयातुल्लाह खुमैनी,
फीडेल कास्ट्रो का
और था मसला यहां -
बिहार के भूमिहारों का
दलितों का
स्त्रियों का
फिर भी
हम ख़ुश थे अपने आप में
इतने ख़ुश कि 
आज भी हरिया उठता है मन
उन दिनों को याद कर

याद ही तो है
जो निर्बाध, निडर, निःशंक
आती-जाती रहती है,
दिल से दिमाग़ तक
छाती रहती है
वक़्त की क़िताब भले पीली हो
पर रहती हैं यादें 
हमेशा हरी, ताज़ा 
और ओस में नहाई हुई
इश्क़ बिना भी।
      -------------

#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh #HindiPoetry 

16 comments:

  1. पुरानी यादों की सुमधुर अभिव्यक्ति !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद अनुपमा त्रिपाठी जी 🙏

      Delete
  2. बहुत सुंदर यादों का सरमाया आपकी यह कविता दिल में उतर गयी, काफ़ी कुछ अपनी सी लगी।अहसासों की सुमधुर अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत धन्यवाद श्री जिज्ञासा सिंह जी🙏

      Delete
  3. Replies
    1. बहुत-बहुत शुक्रिया सुमन जी 🙏

      Delete
  4. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (25-06-2021) को "पुरानी क़िताब के पन्नों-सी पीली पड़ी यादें" (चर्चा अंक- 4106 ) पर होगी।चर्चा का शीर्षक आपकी कविता 'इश्क बिना' से लिया गया है ।
    चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
    Replies
    1. यह एहसास मेरे लिए भाव विभोर कर देने वाला है कि मेरी पंक्तियों को चर्चा का शीर्षक आपने बनाया है आपका हार्दिक आभार मीणा भारद्वाज जी 🙏🙏🙏

      चर्चामंच में मेरी कविता को स्थान देने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद🙏🙏🙏

      Delete
  5. याद ही तो है
    जो निर्बाध, निडर, निःशंक
    आती-जाती रहती है,
    दिल से दिमाग़ तक
    छाती रहती है
    वक़्त की क़िताब भले पीली हो
    पर रहती हैं यादें
    हमेशा हरी, ताज़ा
    और ओस में नहाई हुई
    इश्क़ बिना भी।
    वाह

    ReplyDelete
  6. याद ही तो है
    जो निर्बाध, निडर, निःशंक
    आती-जाती रहती है,
    दिल से दिमाग़ तक
    छाती रहती है ।

    वाह !
    बहुत ही खूब ।

    सादर

    ReplyDelete
  7. बहुत खूबसूरत एहसासों से ओत प्रोत लेखन

    ReplyDelete
  8. वक़्त की क़िताब भले पीली हो
    पर रहती हैं यादें
    हमेशा हरी, ताज़ा
    और ओस में नहाई हुई
    इश्क़ बिना भी।
    यादें तो जीवन का सरमाया होता है,कहाँ कभी पीछा छोड़ता है,हृदयस्पर्शी सृजन,सादर नमन शरद जी

    ReplyDelete
  9. बहुत खूब शदर जी, क्‍या ही सुदरता से यादों का प‍िटारा खेल द‍िया---वाह
    याद ही तो है
    जो निर्बाध, निडर, निःशंक
    आती-जाती रहती है,
    दिल से दिमाग़ तक
    छाती रहती है
    वक़्त की क़िताब भले पीली हो
    पर रहती हैं यादें ---सच में वक्‍त की क‍िताब कभी अपनी यादों को कहीं जाने ही नहीं देती

    ReplyDelete
  10. याद ही तो है
    जो निर्बाध, निडर, निःशंक
    आती-जाती रहती है,
    दिल से दिमाग़ तक
    छाती रहती है
    वक़्त की क़िताब भले पीली हो
    पर रहती हैं यादें
    हमेशा हरी, ताज़ा
    और ओस में नहाई हुई
    इश्क़ बिना भी।

    सुन्दर अभिव्यक्ति.. बेहद सटीक पंक्तियाँ...

    ReplyDelete
  11. वक़्त की क़िताब भले पीली हो
    पर रहती हैं यादें
    हमेशा हरी, ताज़ा
    और ओस में नहाई हुई
    इश्क़ बिना भी। वाह बेहतरीन रचना आदरणीया।

    ReplyDelete