यूं उम्र भर तो मिरे पास न रुकोगे तुम
सलीब ग़म का रखा है मिरे जो कांधे पर
चलोगे चार क़दम और फिर थकोगे तुम
उठा के सिर को कभीभी नहीं जिया तुमने
हरेक शख़्स के आगे में जा झुकोगे तुम
- डॉ शरद सिंह
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वाह
ReplyDeleteसुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteउठा के सिर को कभीभी नहीं जिया तुमने
हरेक शख़्स के आगे में जा झुकोगे तुम
बहुत सुंदर रचना
उम्दा सृजन ।
ReplyDeleteबहुत खूब । हर शेर उम्दा ।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
लाजवाब।
वाह!गज़ब 👌
ReplyDeleteसादर