फ़िलहाल
- डॉ शरद सिंह
रात की
स्याह दीवार पर
चांद का खूंटा
ढो रहा है
तारों की चुनरी को
आमवस में
ढंक जाता है खूंटा
रह जाती है
दिदिपाती चुनरी
चाहे पूर्णिमा हो
या अमावस्या
आकाश सुरक्षित है
चुनरी के लिए
जबकि धरती पर
सुरक्षित नहीं चुनरी
शोहदों से
निर्भयाओं के साथ
हो रहे जघन्य अपराध
नहीं रच सकते
भयमुक्त समाज
धरती से
आकाश ही भला है
फ़िलहाल।
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 18 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteस्वागत योग्य रचनाएं।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर रचना । हार्दिक बधाई आपको
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