निर्लज्जता
- डॉ शरद सिंह
वह बच्चा
जो बीन रहा है
हर बिकाऊ वस्तु
कचरे के ढेर से
उसे नहीं डर
न कोविड का
न किसी और संक्रमण का
वह तो
पैदायशी ग्रस्त है
ग़रीबी के वायरस से
वह बच्चा
देखता है सपने
स्कूल का नहीं,
पढ़ाई का नहीं
बस, अपने मोहल्ले का
'दादा' बनने का
ताकि
जिस दूकान से उसे
नहीं मिलती उधार में रोटी
उस दूकान से
वसूल सके 'हफ़्ता'
और ठंडे लोहे की
एक पिस्टल
खुंसी रहे
उसकी पेंट में पिछवाड़े
वह बच्चा
जो बचा नहीं पाया
अपनी बहन को
बिकने से,
जो छुड़ा नहीं पाया
बाप की दारू,
जो मलहम नहीं लगा पाया
मां के ज़ख़्मों पर,
जो रोज हारता है
अपनी भूख-प्यास से
उस बच्चे से
उम्मीद करना आदर्श की
हमारी निर्लज्जता नहीं
तो और क्या है?
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 07 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(०७ -०९-२०२१) को
'गौरय्या का गाँव'(चर्चा अंक- ४१८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
नग्न सत्य!
ReplyDeleteकटु सत्य
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर |अपने समाज का सच |
ReplyDeleteसटीक प्रहार समाज देश और मनुष्य या पर।
ReplyDeleteअप्रतिम।
लाखों करोड़ों ग़रीब बच्चों का दर्द और आज के समाज की हकीकत बयाँ करती सुंदर रचना।
ReplyDeleteवाकई .... सोचने पर मजबूर करती झकझोर देने वाली रचना ।
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