देवशयनी
- डॉ शरद सिंह
सोने जा रहे देवता
चतुर्मास के लिए
गहरी, गाढ़ी नींद में
जब जाग रहे थे
फिर भी
नहीं रोका
मौत का ताण्डव
बच्चे अनाथ हुए
बड़े हुए बेसहारा
बेहाल मानवता
कराहती रही
सिसकती रही
तड़पती रही
एक-एक सांस के लिए
जबकि
जाग रहे थे देवता
उन दिनों
जब नहीं आई थी
देवशयनी एकादशी
संगमरमरी और ग्रेनाइट के
सुचिक्कन पत्थरों से बने
मंदिरों में
भजन-पूजन के शोर में डूबे
मालदार भक्तों पर आनंदित
सोते रहे
देवता
जागते हुए भी
चार माह की
घोषित निंद्रा
के बीच भी
चलती रही है दुनिया
चलती रहेगी दुनिया
क्या फ़र्क़ कि
देवता जागें
या सोएं
सच यही है-
हर आपदा में
मनुष्य ही सम्हालेगा
मनुष्य को
देवता नहीं।
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जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२१-०७-२०२१) को
'सावन'(चर्चा अंक- ४१३२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन
ReplyDeleteदेवता तो न जागे होते हैं न सोए । फिर भी जो मान्यता है और चली आ रही है उनसे प्रश्न करने का तो मन करता ही है । सुंदर रचना
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