Showing posts with label डॉ. शरद सिंह. Show all posts
Showing posts with label डॉ. शरद सिंह. Show all posts

12 September, 2020

कोशिश करते तो सही | डॉ. शरद सिंह | कविता



कोशिश करते तो सही 

- डॉ. शरद सिंह

    

तुम रखते मेरी हथेली पर 

एक श्वेत पुष्प

और वह बदल जाता 

मुट्ठी भर भात में

तुम पहनाते मेरी कलाई में 

सिर्फ़ एक चूड़ी

और वह ढल जाती

पानी की गागर में

एक क़दम तुम बढ़ते एक क़दम मैं बढ़ती

दिन और रात की तरह हम मिलते 

भावनाओं के क्षितिज पर

तुम रखते मेरे कंधे पर अपनी उंगलियां 

और सुरक्षित हो जाती मेरी देह

तुम बोलते मेरे कानों में कोई एक शब्द

और बज उठता अनेक ध्वनियों वाला तार-वाद्य

सच मानो, 

मिट जाती आदिम दूरियां

भूख और भोजन की

देह और आवरण की

चाहत और स्वप्न की

बस,

तुम कोशिश करते तो सही।

----------


17 June, 2020

पृथ्वी भी मेरी तरह (कविता) - डॉ. शरद सिंह

Prithvi Bhi Meri Tarah, Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh
पृथ्वी भी मेरी तरह
---------------------
- डॉ. शरद सिंह

हां, मैं हूं नॉस्टैल्जिक
किन्तु बोहेमियन भी
अपनी सारी पीड़ाओं से बाहर घूमती
बगल में दबाए यादों की गठरी
क्योंकि संभव नहीं है फेंकना यादों को
यादें ही तो हैं जो मुझको
मिलाती रहती हैं मुझसे
किसी आईने की तरह
कि सजी थी मैं भी कभी
किसी के लिए
लगा कर माथे पर चांद
ओढ़कर किरणें
पृथ्वी की तरह
इसीलिए शायद
बोहेमियन है पृथ्वी भी मेरी तरह
और कुछ-कुछ
नॉस्टैल्जिक भी।
___________

1- नॉस्टैल्जिक = यादों के सहारे जीने वाली
2- बोहेमियन = घुमन्तू

#SharadSingh #Poetry #MyPoetry
#मेरीकविताए_शरदसिंह #नॉस्टैल्जिक #बोहेमियन #पृथ्वी #यादों_की_गठरी #आईने #चांद

30 January, 2019

इंतज़ार (नज़्म) - डॉ शरद सिंह

इंतज़ार (नज़्म)
Dr (Miss) Sharad Singh

------------------
सब्ज़ पत्तों का
इंतजार
अभी तक है उसे
कि उसके आने का
ऐतबार अभी तक है उसे
शज़र वो देख रहा रास्ता
महीनों से
हुआ है कैसा बदल
आज के जमाने में
बदल रही है यहां रुत भी
बेवफ़ा की तरह.......

- डॉ शरद सिंह


Intezar - Nazm of Dr ( Miss) Sharad Singh


लहू का रंग (नज़्म) - डॉ शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh
लहू का रंग (नज़्म)
-----------------------
लहू का रंग न बदला है
न बदलेगा कभी
फ़िजा में घोल दो जितनी भी
सियासत की लहर
लहू तो जिस्म में उसके भी बह रहा है जो
जल रह है ग़रीबी की आग में देखो
रहेगा वो तो हमेशा की तरह फुटपाथी
कि जिसके ज़ेब में रहता है
रोज सन्नाटा
वो हाथठेले पे ख़्वाबों को बेचता ही रहा
कि जिसके हाथ में
ख़्वाबों की लकीरें ही न थीं
लहू तो लाल था उसका
जिसे दवा न मिली
लहू तो लाल था उसका भी
जिसे दुआ न मिली
लहू तो लाल ही होता है हर किसी का मगर
ज़र्द दिखता है जो हो जाय धरम का मारा
ज़र्द दिखता है जो हो जाय शरम का मारा
लहू के रंग को रहने दो लाल ही वरना
पड़ेगा खुद के लहू से यूं एक दिन डरना...।

24 January, 2019

तेरी याद की शम्मा (नज़्म) - डॉ. शरद सिंह

 
Dr (Miss) Sharad Singh

तेरी याद की शम्मा
(नज़्म)
----------------------------
मेरी तनहाई के आले में
तेरी याद की शम्मा
उजाले की कसम ले कर
जली जाती है रातो-दिन
मेरी सांसें भी चलती हैं तो
धीमी..और धीमी सी
कहीं झोंका मेरी सांसों का शम्मा को बुझा न दे
कि जब तक है खड़ी दीवार मेरे जिस्म की, तब तक
ये आला है, ये शम्मा है, ये सांसे हैं, ये यादें हैं
कि उसके बाद तनहाई रहेगी खुद ही तन्हा सी
कि खंडहर टूट जाएगा
कि आला छूट जाएगा
कि शम्मा की बुझी बस्ती
अंधेरा लूट जाएगा.....।
- डॉ. शरद सिंह


18 January, 2019

मुहब्बत में शरारत का मज़ा ... - डॉ. शरद सिंह

Mohabbat Me Shararat Ka... Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh
मुहब्बत में  शरारत का  मज़ा   कुछ और होता है
कहा इक ने   तो  दूजे ने   सुना  कुछ और होता है
यही है तो  अलग अंदाज़ा अपने इश्क़ का, बेशक़
कि दुनिया और कुछ समझे, हुआ कुछ और होता है
- डॉ. शरद सिंह

शॉल, कोट, स्वेटर और जाड़े की रात ... - डॉ. शरद सिंह

Shawl, Coat, Sweater ... Ghazal By Dr (Miss) Sharad Singh

 शॉल, कोट, स्वेटर और जाड़े की रात
दूध चाय, शक्कर और जाड़े की रात
याद बहुत आता है ट्रेन के सफ़र में
घर का वो बिस्तर और जाड़े की रात
- डॉ शरद सिंह

उसे दी थी सदा ...- डॉ. शरद सिंह

Use Di Thi Sadaa ... Ghazal by Dr (Miss) Sharad Singh

उसे दी थी सदा पर वो कभी मुड़कर नहीं आया
अंधेरा छा गया हो, साथ   फिर  देता नहीं साया
हमारा ही जुनूं था,  हम   पुकारे  ही  गए उसको
वो बादल था कहीं बरसा,यहांपर फिर नहीं छाया
- डॉ शरद सिंह

11 January, 2019

मैं कौन हूं...- डॉ. शरद सिंह

 
Mai Kaun Hun ... (Nazm) by Dr (Miss) Sharad Singh

मैं कौन हूं...
--------------
मैं कौन हूं ये बताना कभी नहीं मुमकिन
मगर मैं हूं तो इसी क़ायनात का ज़र्रा
नहीं हूं चांद, नहीं आफ़ताब,
कुछ भी नहीं
यही बहुत है कि
दुनिया का एक हूं हिस्सा!
- डॉ. शरद सिंह


नफ़रतें तो किसी काम आती नहीं - डॉ. शरद सिंह

Ghazal of Dr (Miss) Sharad Singh
नफ़रतें तो किसी काम आती नहीं
दुश्मनी, दुश्मनी को मिटाती नहीं - डॉ. शरद सिंह

30 October, 2018

ये गुब्बारे - डॉ. शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh with Balloons
सुनो ज़रा क्या कहते हैं ये गुब्बारे
धार  हवा  की  सहते हैं  ये गुब्बारे

रंगों की ये बांध पोटली  कांधे पर
भीतर-भीतर  दहते  हैं  ये गुब्बारे

बंधे हुए हैं पर इनको परवाह नहीं
अपनी रौ  में  बहते  हैं ये  गुब्बारे

बच्चे, बूढ़े, युवा कहीं कोई भी हो
सब के मन को गहते हैं ये गुब्बारे

किसी हसीं सपने के जैसे लगते हैं
‘शरद’ धूप मे उड़ते हैं  ये गुब्बारे

                             - डॉ. शरद सिंह



20 March, 2018

विश्व गौरैया दिवस पर मेरी यह कविता ... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh on World Sparrow Day
नन्हीं गौरैया ने...
----------------
पंखों को तौला है
खुद से ही बोला है
नन्हीं गौरैया ने-
घर के दरवाज़े,
खिड़की में जाली है
कहने भर को हैं अब
पंछी घरेलू पर
ख़ालिस बदहाली है
बाहर मोबाईल के
भरमाते टॉवर हैं
बिजली के तारों में
लावे-सा पॉवर है
भरुंगी उड़ान मगर
आंगन में बनी रहूंगी
मैं तो भईया,
डटी हुई हूं अब तक
देख मैं मुनईया !
    - डॉ. शरद सिंह


#विश्व_गौरैया_दिवस #WorldSparrowDay #SharadSingh #Poetry #MyPoetry #World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh

26 July, 2017

तो फिर चलो .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

तो फिर चलो
--------------

जंग खाए पुराने तालों
बंद दरवाज़ों
और यादों के पिटारों में
क्या कोई फ़र्क़ होता है ?

नहीं तो !
रस्टिक-ताले खुलते नहीं
किसी भी चाबी से
तोड़ दिए जाएं ताले गर,
दरवाज़े कराहते हैं खुलते हुए
कमरे के भीतर बसी बासी हवाओं का झोंका
भयावह बना देता है यादों को

तो फिर चलो,
बहुत पुरानी यादों को
कहीं कर दें विसर्जित
उससे नई यादों को संजोने के लिए
..... कुछ देर मुस्कुराने के लिए।

- डॉ. शरद सिंह

#SharadSingh #Poetry #MyPoetry #World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh
#मेरीकविताए_शरदसिंह #मुस्कुराने #चाबी #ताले #दरवाज़े #यादों #मुस्कुराने

25 July, 2017

लकीरों को हराते हुए .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

लकीरों को हराते हुए
---------------------

कॉपी के फटे हुए पन्ने पर
नहीं है आसान
खिलाना
प्यार का गुलाब
कुछ लकीरें लांघनी होंगी
कुछ लकीरें मिटानी होंगी
कुछ लकीरें छोड़नी होंगी
ताकि जिया जा सके
अपना जीवन
अपना प्यार
अपने ढंग से
लकीरों को हराते हुए।

इन दिनों .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

इन दिनों
-----------

सूरज को बर्फ होते
चांद को जलते
पंछियों को तैरते
मछलियों को उड़ते
मैंने देखा है
उसे
इन दिनों बदलते

खुली किताब सा मेरा मन .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

खुली किताब सा मेरा मन
 ------------------------
खुली किताब सा मेरा मन
पर
क्या पढ़ने की फ़ुर्सत है
उसे
और पढ़ कर
समझने की?

किसी की याद में .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

किसी की याद में
-----------------
शाम का सूरज फिसला है
माथे से
बिंदी की तरह
और सूना हो गया मेरा मन
किसी की याद में

इनसे नहीं .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh

इनसे नहीं ...
--------

टूटते तारे
कहते हैं मुझसे
कुछ मांगू
क्या मांगू इनसे?
मुट्ठी भर प्यार
और विश्वास
ये मुझे तुमसे चाहिए
इनसे नहीं...

10 July, 2017

कितना मुश्क़िल है .... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


कितना मुश्क़िल है
--------------------
एक नाम होंठों से फिसला
मगर तैर न सका हवा में
एक स्वप्न आंखों में उतरा
मगर ठहर न सका दृश्यों में
मैंने जाना ठीक उसी पल
कितना मुश्क़िल है
कर पाना अभिव्यक्त प्रेम को
किसी गली, सड़क या चौराहे पर
सच, कितना मुश्क़िल है
हो पाना मुखर ...
प्रेम का ... प्रेम से ... प्रेम के लिए ...



प्यार आता है मुझे ... डॉ. शरद सिंह

Poetry of Dr (Miss) Sharad Singh


प्यार आता है मुझे
------------------

नींद प्यारी होती है
हमेशा नहीं
स्वप्न सुंदर होते हैं
हमेशा नहीं

फिर भी
कभी-कभी

जब मैं बना पाती हूं
रात के कैनवास पर
एक राह
फूलों वाली
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
नींद और स्वप्न पर
प्यार आता है मुझे

- डॉ. शरद सिंह

#SharadSingh #Poetry #MyPoetry
#मेरीकविताए_शरदसिंह #नींद #स्वप्न #प्यार #राह #कैनवास #फूलोंवाली #तुम्हारेलिए #कभी_कभी