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12 September, 2020

कोशिश करते तो सही | डॉ. शरद सिंह | कविता



कोशिश करते तो सही 

- डॉ. शरद सिंह

    

तुम रखते मेरी हथेली पर 

एक श्वेत पुष्प

और वह बदल जाता 

मुट्ठी भर भात में

तुम पहनाते मेरी कलाई में 

सिर्फ़ एक चूड़ी

और वह ढल जाती

पानी की गागर में

एक क़दम तुम बढ़ते एक क़दम मैं बढ़ती

दिन और रात की तरह हम मिलते 

भावनाओं के क्षितिज पर

तुम रखते मेरे कंधे पर अपनी उंगलियां 

और सुरक्षित हो जाती मेरी देह

तुम बोलते मेरे कानों में कोई एक शब्द

और बज उठता अनेक ध्वनियों वाला तार-वाद्य

सच मानो, 

मिट जाती आदिम दूरियां

भूख और भोजन की

देह और आवरण की

चाहत और स्वप्न की

बस,

तुम कोशिश करते तो सही।

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