- डॉ शरद सिंह
एक बुद्धिजीवी ने प्रश्न उछाला-
"आखिर कब तक चलेगा
यह असंवेदनशील असंवैधानिक दौर ?
व्यवस्था फेल होकर नियति और प्रारब्ध के रामभरोसे
बेबस लाचारी का फायदा उठाते लोग..."
प्रश्न गंभीर था
इन दिनों गंभीर प्रश्नों पर ही तो
जी रहे हैं हम सभी
जिनके उत्तर
छटपटा रहे हैं
आईसीयू में
हाईफ्लो ऑक्सीजन पर
जिनके उत्तर
बाट जोहते हैं
असली रेमडेसिविर इंजेक्शन का
जिनके उत्तर
वेंटिलेटर तक भी नहीं पहुंच पाते हैं
जिनके उत्तर
तीन पर्तों में लपेट कर
सौंप दिए जाते हैं अग्नि को
निरर्थक हैं ऐसे सारे प्रश्न तब तक
जब तक
हम में सामूहिक हौसला नहीं जागता
उत्तरों को
आईसीयू से
जीवित बचा लाने का,
निरर्थक हैं सारे प्रश्न।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद यशोदा अग्रवाल जी 🙏
Deleteआपकी यह अभिव्यक्ति सीधे आपके हृदय से फूटकर निकली है शरद जी क्योंकि आपने अपनों के विछोह की अपूरणीय क्षति सही है। आपका भोगा हुआ यथार्थ है यह। और इसीलिए इसमें आदि से अंत तक सत्य ही है तथा सत्य के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है।
ReplyDeleteकाश ! मैं समय को पीछे ले जा कर सब कुछ ठीक कर पाती....
Deleteवाकई निरर्थक हैं । जो स्वयं जूझ चुका हो उसकी कलम से यथार्थ ही निकलेगा ।
ReplyDeleteमर्मांतक पीड़ा झेली है... अपने हाथों से पानी तक न पिला पाने की विवशता ...आज भी पानी का घूंट मेरे हलक़ में अटकने लगता है...
Deleteयथार्थ से परिपूर्ण रचना
ReplyDeleteशुक्रिया भारती जी...
Deleteप्रिय शरद जी,
ReplyDeleteआपकी पीड़ा का अनुमान भर आँख भर आ रही आपकी मानसिक स्थिति समझने का प्रयास भर ही कर सकते हैं।
बेहद आहत हैं नियति के इस क्रूर प्रहार से,इस दुःख की घड़ी में सारे शब्द मूक है।
🙏🙏🙏
हृदय विदारक अभिव्यक्ति शरद जी ! जिन पर गुज़री है वे ही जानते इस दुःख की शिला कितनी भारी होती है ! मार्मिक रचना !
ReplyDeleteजी, मेरा दुर्भाग्य कि मैंने झेला है यह सब...
Delete🙏🙏🙏
हृदय विदारक अभिव्यक्ति, शरद दी। ईश्वर आपको दुख सहने की शक्ति दे।
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