18 May, 2021

अहसास | कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अहसास
       - डॉ (सुश्री) शरद सिंह

अव्यवस्थाओं के अभ्यस्त हम
चुराने लगे हैं नज़रें
मौत की ख़बरों से

हम नहीं जानना चाहते
कि ख़ामी कहां है
हम नहीं जानना चाहते
कि दोषी कौन है
हम नहीं जानना चाहते
कि जिम्मेदार कौन है

हम वो बन चुके हैं
जो बिता देना चाहते हैं
'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी' के परिसर में
अपना बचा हुआ जीवन

अब नहीं है
सच और झूठ के बीच महीन रेखा
अब है चौड़ी खाई
जिसे नहीं फलांग सकेंगे हम
हमारे पांव हो चुके हैं बौने
हाथ कंधों से ऊपर उठते ही नहीं
गरदन झुक चुकी है
और दिमाग़ हो चला है विचारशून्य
हमारी उंगलियों में तो तर्जनी ही नहीं है
ठीक वैसे ही
जैसे पूंछ का उपयोग न होने पर
हम मनुष्यों ने खो दी अपनी पूंछ
अब हम जीने के आदी हो चले हैं
बिना तर्जनी के,
अच्छा है
बना रहेगा सुरक्षित होने का भ्रम
और हम
अख़बारों में पढ़ते रहेंगे चुटकुले
छांट-छांट कर

परिस्थिति से पलायन
समा गया है हमारे रक्त में
बदल रहा है हमारा डीएनए
बदल रहा है हमारा जिनोम

तो क्या

ज़िन्दा रहने का अहसास
बचा तो है
यह क्या कम है....?
        -------------

#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh

20 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 19 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. "पांच लिंकों का आनन्द" में मेरी कविता शामिल करने के लिए हार्दिक आभार दिव्या अग्रवाल जी 🙏

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  2. हमारी उंगलियों में तो तर्जनी ही नहीं है
    ठीक वैसे ही
    जैसे पूंछ का उपयोग न होने पर
    हम मनुष्यों ने खो दी अपनी पूंछ
    सही कहा अब तर्जनी का क्या काम....जब हम किसी भी अव्यवस्था के लिए उंगली नहीं उठा सकते...तो हाथों से तर्जनी गुम हो जानी चाहिए।
    सामयिक मानसिक उलझन एवं अव्यवस्थाओं से उपजे आक्रोश को व्यक्त करती रचना।

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    1. हार्दिक धन्यवाद सुधा देवरानी जी 🙏

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  3. परिस्थिति से पलायन
    समा गया है हमारे रक्त में
    बदल रहा है हमारा डीएनए
    बदल रहा है हमारा जिनोम

    तो क्या

    ज़िन्दा रहने का अहसास
    बचा तो है
    यह क्या कम है....?---गहरी रचना, गहरे भाव।

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    1. बहुत धन्यवाद संदीप कुमार शर्मा जी 🙏

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  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा मंगलवार (18-05-2021 ) को 'कुदरत का कानून अटल है' (चर्चा अंक 4069) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    1. हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏🙏🙏

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  5. समसामयिक दर्द और सच्चाई बयां करती उत्कृष्ट रचना ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद जिज्ञासा सिंह जी 🙏

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  6. उंगली उठाने वाले आज भी कम नहीं हैं, पर इस अफरातफरी में कौन किसी की सुनता है, प्यास लगने पर यदि कोई कुआँ खोदे तो तो प्यासे का क्या हाल होगा, यही हालत इस समय हो रही है, आक्सीजन प्लांट जब लगाए जा सकते था तब हम कोरोना को हरा चुके हैं, यह सोचकर बैठे रहे, अब सब इंतजाम किए जा रहे हैं, शायद तीसरी लहर आने से पहले हम संभल जाएं और सतर्क हो जाएं, आपकी रचना में बहुत गहरा दर्द छिपा है और कड़वी सच्चाई भी

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    1. मेरी कविता के मर्म को आत्मसात कर विश्लेषणात्मक टिप्पणी हेतु हार्दिक आभार अनीता जी 🙏🙏🙏

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  7. सही कहा आपने पलायनवादी बनते जा रहे हैं हम सब ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद शुभा जी 🙏

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  8. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद गगन शर्मा जी 🙏

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  9. वर्तमान स्थिति को बयां करती दर्द भरी खूबसूरत रचना

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    1. बहुत शुक्रिया मनीषा गोस्वामी जी 🙏

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  10. सच में शरद जी, यह आपने कटुसत्‍य कह द‍िया----"हम वो बन चुके हैं
    जो बिता देना चाहते हैं
    'व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी' के परिसर में
    अपना बचा हुआ जीवन" --वाह

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