- डॉ शरद सिंह
तुम होतीं
तो चांद दिखने की ख़बर पा कर
फोन करतीं शमीम आपा को, कहतीं-
"ईद मुबारक़"
सुब्ह होते ही
छलकता उत्साह कि
आज चलना है ईद पर गले मिलने
सिवैंया खाने
देर तक माथापच्ची करतीं कि
क्या ले चलें उपहार
ये ठीक रहेगा
या वो ठीक रहेगा
दीदी, सच कहूं आंखें भर आती थीं
तुम्हारा आपा से बहनापा देख कर
आज तुम होतीं तो
भले ही घर से मनाते ईद
मगर मनाते ज़रूर और ख़ुश हो लेते
तुम्हारे बिना यह मीठी ईद
डूबी है आंसुओं के खारेपन में।
-------------
#शरदसिंह #डॉशरदसिंह #डॉसुश्रीशरदसिंह
#SharadSingh #Poetry #poetrylovers
#World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (15-05-2021 ) को 'मंजिल सभी को है चलने से मिलती' (चर्चा अंक-4068) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चा मंच में मेरी रचना को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏
Deleteतुम्हारे बिना यह मीठी ईद
ReplyDeleteडूबी है आंसुओं के खारेपन में।---जी सच यही अनुभूति हो रही है।
धन्यवाद संदीप जी 🙏
Deleteयादें भुलाए नहीं भूलतीं
ReplyDeleteबेशक़ गगन शर्मा जी 🙏
Deleteतुम्हारे बिना यह मीठी ईद
ReplyDeleteडूबी है आंसुओं के खारेपन में।
बेहद मार्मिक..आपका दर्द महसूस कर सकती हूँ
बहुत दर्द है,आपकी इस कविता में शरद जी,क्या कहूं,कुछ सालो पहले मैंने भी अपनी बहुत प्यारी दीदी को खोया था,समझ सकती हूं आपको ।अपना ख्याल रखिए,आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDelete