24 September, 2024

शायरी | फ़लसफ़ा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

वक़्त का फ़लसफ़ा भी पढ़ना था
पर  अंगूठा छाप  रह गए  हम तो।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

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