Sharad Singh
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24 September, 2024
शायरी | फ़लसफ़ा | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
वक़्त का फ़लसफ़ा भी पढ़ना था
पर अंगूठा छाप रह गए हम तो।
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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2 comments:
Onkar
Thursday, September 26, 2024 11:30:00 AM
सुंदर
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दिगम्बर नासवा
Saturday, September 28, 2024 7:18:00 PM
आहा ... क्या बात कह दी ...
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सुंदर
ReplyDeleteआहा ... क्या बात कह दी ...
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