- डॉ शरद सिंह
तेरे जाने से ये दुनिया, वीरानी-सी लगती है
कैसे ज़िन्दा हूं मैं अब तक, हैरानी-सी लगती है
बड़ा कठिन है वादा करना खुद से जीते जाने का
तुझसे फिर मिल पाने में ही, आसानी-सी लगती है
जिसपे गुज़री है वो रो कर, अपना दिल हल्का करता
दुनियावालों को तो ये भी नादानी-सी लगती है
उसका होना ही था काफ़ी, दुनिया अपनी लगती थी
अब तो हर महफ़िल, हर मज़लिस बेगानी-सी लगती है
उसके क़दमों में था रखना, ख़ुशियों का हर नज़राना
"शरद" ज़िंदगी की हर ख़्वाहिश, बेमानी-सी लगती है
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रचना के मर्मान्तक भाव निशब्द कर रहे शरद जी | अपना ख़याल रखिये | इस विकलता पर आपको काबू पाना होगा |
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