13 August, 2021

मन का प्लेनेटेरियम | कविता | डॉ शरद सिंह

मन का प्लेनेटेरियम
           - डॉ शरद सिंह

घने, काले बादलों से
आच्छादित आकाश
खो देता है नीलापन
तब कहां बिसात
सूरज, चांद, तारों की
कि दिखा सकें
अपना चेहरा

मगर 
मन के
प्लेनेटेरियम में
दिनदहाड़े
चमकते, धधकते
लुभाते, बुलाते
मनचाहे ग्रह-नक्षत्र,
कभी-कभी 
आवारा उल्लकाएं भी
गुज़र जाती हैं
बिलकुल क़रीब से

वहां है
 दूरबीन
'हब्बल'  से भी 
अधिक शक्तिशाली
मन देख सकता है
हज़ारों आकाशगंगाओं के 
पार भी
कुछ भी

पर छू नहीं सकता
चाह कर भी
बेचारा
लाचार मन।
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9 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शनिवार (१४-०८-२०२१) को
    "जो करते कल्याण को, उनका होता मान" चर्चा अंक-४१५६ (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. प्रिय अनिता सैनी जी, मेरी कविता को चर्चा मंच में शामिल करने पर आपका हार्दिक आभार एवं बहुत-बहुत धन्यवाद🌹🙏🌹

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  2. अद्भुत सृजन।
    एक तरफ खुरदरा विज्ञान दूसरी और मन की आलोकिक गति।
    संवेदनाओं से ओतप्रोत सृजन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद कुसुम कोठारी जी 🌹🙏🌹

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  3. सुंदर है कविता का भाव और शिल्प. बधाई शरद जी!

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    1. हार्दिक धन्यवाद कल्पना मनोरमा जी 🌹🙏🌹

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  4. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद गगन शर्मा जी🌹🙏🌹

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  5. हिंदी रचना जगत में आपकी सुंदर रचनाएं दिल को छू लेती हैं। बधाईः

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