मित्रों का स्वागत है - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
सुन्दर चित्र-लेख बढ़िया पंक्तियाँ आदरेया-चाहे मथुरा जा बसे, जाय द्वारिका द्वीप |होली के हुडदंग में, आये कृष्ण समीप |आये कृष्ण समीप, मार पिचकारी गीला |छुप छुप मारे टीप, रास आती है लीला | किन्तु कालिया-नाग, आज मिलता चौराहे |करता अनुचित मांग, खेलना होली चाहे ||
अत्यन्त आभारी हूं आपकी......विचारों से अवगत कराने के लिए..
बहुत उम्दा सुंदर प्रस्तुति,,,शरद जी ,,,बीबी बैठी मायके , होरी नही सुहायसाजन मोरे है नही,रंग न मोको भाय...उपरोक्त शीर्षक पर आप सभी लोगो की रचनाए आमंत्रित है,,,,,जानकारी हेतु ये लिंक देखे : होरी नही सुहाय,
आपने मेरी पंक्तियों को पसन्द किया आभारी हूं....
बेहतरीन रचना,आभार.
विचारों से अवगत कराने के लिए.. हार्दिक धन्यवाद....
वाह....नायाब.रामराम.
आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ....
वाह, बहुत खूबसादर !
बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
जी बहुत खूब ...... हर सवाल का इक जवाब
विश्वास से भरा
इस उत्साहवर्द्धन के लिए अत्यन्त आभारी हूं....
वाह....मेरी हर वजह का जवाब तू ..........
मेरी पंक्तियों को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, रविकर जी!
लिंक-लिक्खाड़ में शामिल करते के लिए हार्दिक धन्यवाद...आभार!
बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति!
बहुत सुन्दर..
वाह !!!!!! लाजवाब.....
प्रेम की सर्वोच्च अवस्था ...आनंदित करती, गुदगुदाती रचना ..सादर प्रणाम के साथ
बहुत ही खुबसूरत सदा की भांति
आस्था के स्वर -आश्वस्त करती पंक्तियाँ!
सुन्दर चित्र-लेख
ReplyDeleteबढ़िया पंक्तियाँ आदरेया-
चाहे मथुरा जा बसे, जाय द्वारिका द्वीप |
होली के हुडदंग में, आये कृष्ण समीप |
आये कृष्ण समीप, मार पिचकारी गीला |
छुप छुप मारे टीप, रास आती है लीला |
किन्तु कालिया-नाग, आज मिलता चौराहे |
करता अनुचित मांग, खेलना होली चाहे ||
अत्यन्त आभारी हूं आपकी......विचारों से अवगत कराने के लिए..
Deleteबहुत उम्दा सुंदर प्रस्तुति,,,शरद जी ,,,
ReplyDeleteबीबी बैठी मायके , होरी नही सुहाय
साजन मोरे है नही,रंग न मोको भाय..
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उपरोक्त शीर्षक पर आप सभी लोगो की रचनाए आमंत्रित है,,,,,
जानकारी हेतु ये लिंक देखे : होरी नही सुहाय,
आपने मेरी पंक्तियों को पसन्द किया आभारी हूं....
Deleteबेहतरीन रचना,आभार.
ReplyDeleteविचारों से अवगत कराने के लिए.. हार्दिक धन्यवाद....
Deleteवाह....नायाब.
ReplyDeleteरामराम.
आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार ....
Deleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteसादर !
बहुमूल्य टिप्पणी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
Deleteजी बहुत खूब ...... हर सवाल का इक जवाब
ReplyDeleteआपने मेरी पंक्तियों को पसन्द किया आभारी हूं....
Deleteविश्वास से भरा
ReplyDeleteइस उत्साहवर्द्धन के लिए अत्यन्त आभारी हूं....
Deleteवाह....मेरी हर वजह का जवाब तू ..........
ReplyDeleteमेरी पंक्तियों को आत्मीयता प्रदान करने के लिये आभार....
Deleteमेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए हार्दिक आभार, रविकर जी!
ReplyDeleteलिंक-लिक्खाड़ में शामिल करते के लिए हार्दिक धन्यवाद...आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवाह !!!!!! लाजवाब.....
ReplyDeleteप्रेम की सर्वोच्च अवस्था ...आनंदित करती, गुदगुदाती रचना ..सादर प्रणाम के साथ
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत सदा की भांति
ReplyDeleteआस्था के स्वर -आश्वस्त करती पंक्तियाँ!
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