13 February, 2021

प्रेम और वसंत | कविता | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

Dr (Miss) Sharad Singh

कविता

प्रेम और वसंत

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह


किसी को

देखते ही

जब

शब्द खो देते हैं

अपनी ध्वनियां 

और

मुस्कुराता है मौन 


ठीक वहीं से 

शुरु होता है

अंतर्मन का कोलाहल

और गूंज उठता है

प्रेम का अनहद नाद

बहने लगती हैं

अनुभूतियों की राग-रागिनियां

धमनियों में

रक्त की तरह


भर जाती है

धरती की अंजुरी भी

पीले फूलों के शगुन से


बस, तभी सहसा

खिलखिला उठते हैं 

प्रेम और वसंत

पूरे संवेग से

एक साथ

देह और प्रकृति में।

------------------

#SharadSingh #Shayari #Poetry #कविता #वसंत #प्रेम #अनहदनाद #देह #संवेग #प्रकृति #World_Of_Emotions_By_Sharad_Singh

23 comments:

  1. मखमली अहसासों से पगी कोमल भावाभिव्यक्ति । अत्यंत सुन्दर सृजन शरद जी 🙏🌹🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹

      Delete
  2. Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद वर्षा दी 🌹🙏🌹

      Delete
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज रविवार 14 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. यशोदा अग्रवाल जी,
      "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
      - डॉ शरद सिंह

      Delete
  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 15 फ़रवरी 2021 को चर्चामंच <a href="https://charchamanch.blogspot.com/ बसंत का स्वागत है (चर्चा अंक-3978) पर भी होगी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रवीन्द्र सिंह यादव जी,
      "चर्चा मंच" में मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद...
      चर्चा मंच पर अपनी रचना को देखना सदा सुखद अनुभूति कराता है।
      आपका हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
      - डॉ शरद सिंह

      Delete
  5. बहुत ही सुंदर रचना, बसंत ऋतु की तरह मनमोहक

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद ज्योति सिंह जी 🌹🙏🌹

      Delete
  6. डॉ0 शरद आपके ब्लॉग पर बहुत अर्से बाद आना हुआ , आपको पढ़ते हुए हमेशा ही सुखद अनुभूति हुई । प्रकृति और प्रेम दोनो का ही समन्वय पढ़ने को मिला । आभार ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप सदा साथ बनी रहिए.. आपका साथ हमेशा ऊर्जा देता रहा है...
      पुनः स्वागत है आपका 🌹🙏🌹

      Delete
  7. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति जी 🌹🙏🌹

      Delete
  8. बहुत खूब ल‍िखा शरद जी, क‍ि ठीक वहीं से

    शुरु होता है

    अंतर्मन का कोलाहल

    और गूंज उठता है

    प्रेम का अनहद नाद

    बहने लगती हैं

    अनुभूतियों की राग-रागिनियां

    धमनियों में

    रक्त की तरह..वाह प्रेम की बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत शुक्रिया अलकनंदा जी 🌹🙏🌹

      Delete
  9. किसी को
    देखते ही
    जब
    शब्द खो देते हैं
    अपनी ध्वनियां
    और
    मुस्कुराता है मौन....अतिसुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक धन्यवाद शकुंतला जी 🌹🙏🌹

      Delete
  10. बहुत ही सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🌹🙏🌹

      Delete
  11. वाह!गज़ब का सृजन।
    मन को छूती अभिव्यक्ति।
    सादर

    ReplyDelete
  12. अत्यंत ही अलौकिक कृति। बसंत को तो जैसे आपने मन में पिरो दिया है ।।।।।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया। ।।

    ReplyDelete
  13. भर जाती है

    धरती की अंजुरी भी

    पीले फूलों के शगुन से ----- बहुत सराहनीय | शुभ कामनाएं

    ReplyDelete