Dr (Miss) Sharad Singh |
कविता
प्रेम और वसंत
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
किसी को
देखते ही
जब
शब्द खो देते हैं
अपनी ध्वनियां
और
मुस्कुराता है मौन
ठीक वहीं से
शुरु होता है
अंतर्मन का कोलाहल
और गूंज उठता है
प्रेम का अनहद नाद
बहने लगती हैं
अनुभूतियों की राग-रागिनियां
धमनियों में
रक्त की तरह
भर जाती है
धरती की अंजुरी भी
पीले फूलों के शगुन से
बस, तभी सहसा
खिलखिला उठते हैं
प्रेम और वसंत
पूरे संवेग से
एक साथ
देह और प्रकृति में।
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मखमली अहसासों से पगी कोमल भावाभिव्यक्ति । अत्यंत सुन्दर सृजन शरद जी 🙏🌹🙏
ReplyDeleteआपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार मीना भारद्वाज जी 🌹🙏🌹
Deleteशानदार
ReplyDeleteलाजवाब...
हार्दिक धन्यवाद वर्षा दी 🌹🙏🌹
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 14 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteयशोदा अग्रवाल जी,
Delete"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद एवं हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 15 फ़रवरी 2021 को चर्चामंच <a href="https://charchamanch.blogspot.com/ बसंत का स्वागत है (चर्चा अंक-3978) पर भी होगी।
रवीन्द्र सिंह यादव जी,
Delete"चर्चा मंच" में मेरी कविता को शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद...
चर्चा मंच पर अपनी रचना को देखना सदा सुखद अनुभूति कराता है।
आपका हार्दिक आभार 🌹🙏🌹
- डॉ शरद सिंह
बहुत ही सुंदर रचना, बसंत ऋतु की तरह मनमोहक
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद ज्योति सिंह जी 🌹🙏🌹
Deleteडॉ0 शरद आपके ब्लॉग पर बहुत अर्से बाद आना हुआ , आपको पढ़ते हुए हमेशा ही सुखद अनुभूति हुई । प्रकृति और प्रेम दोनो का ही समन्वय पढ़ने को मिला । आभार ।
ReplyDeleteआप सदा साथ बनी रहिए.. आपका साथ हमेशा ऊर्जा देता रहा है...
Deleteपुनः स्वागत है आपका 🌹🙏🌹
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ज्योति जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत खूब लिखा शरद जी, कि ठीक वहीं से
ReplyDeleteशुरु होता है
अंतर्मन का कोलाहल
और गूंज उठता है
प्रेम का अनहद नाद
बहने लगती हैं
अनुभूतियों की राग-रागिनियां
धमनियों में
रक्त की तरह..वाह प्रेम की बेहतरीन रचना
बहुत शुक्रिया अलकनंदा जी 🌹🙏🌹
Deleteकिसी को
ReplyDeleteदेखते ही
जब
शब्द खो देते हैं
अपनी ध्वनियां
और
मुस्कुराता है मौन....अतिसुंदर
हार्दिक धन्यवाद शकुंतला जी 🌹🙏🌹
Deleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🌹🙏🌹
Deleteवाह!गज़ब का सृजन।
ReplyDeleteमन को छूती अभिव्यक्ति।
सादर
अत्यंत ही अलौकिक कृति। बसंत को तो जैसे आपने मन में पिरो दिया है ।।।।।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया। ।।
भर जाती है
ReplyDeleteधरती की अंजुरी भी
पीले फूलों के शगुन से ----- बहुत सराहनीय | शुभ कामनाएं